समय की धार ही तो है

01-10-2019

समय की धार ही तो है

डॉ. अवनीश सिंह चौहान

समय की धार ही तो है
किया जिसने विखंडित घर

न भर पाती हमारे
प्यार की गगरी
पिता हैं गाँव
तो हम हो गए शहरी

ग़रीबी में जुड़े थे सब
तरक्क़ी ने किया बेघर

ख़ुशी थी तब
गली की धूल होने में
उमर खपती यहाँ
अनुकूल होने में

मुखौटों पर हँसी चिपकी
कि सुविधा संग मिलता डर

पिता की ज़िंदगी थी
कार्यशाला-सी
जहाँ निर्माण में थे-
स्वप्न, श्रम, खाँसी

कि रचनाकार असली वे
कि हम तो बस अजायबघर

बुढ़ाए दिन
लगे साँसें गँवाने में
शहर से हम भिड़े 
सर्विस बचाने में

कहाँ बदलाव ले आया
शहर है या कि है अजगर

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

व्यक्ति चित्र
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बात-चीत
सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में