समय (चन्द्र मोहन किस्कू)
चंद्र मोहन किस्कूवक़्त पर नहीं जागोगे तो
देख नहीं पाओगे
खिली फूल पर शबनम
पक्षियों का कलरव
सुन नहीं पाओगे
वक़्त पर नहीं जागोगे तो
आँखों से काजल चुरायेंगे तुम्हारे
पैर तले की ज़मीन चुरा लेंगे
जान ही नहीं पाओगे
समय पर सावधान नहीं होगे तो
तुम्हारे देश में दुश्मन घुस आएँगे
अपने ही घर से खदेड़ देंगे
दूसरों के पराधीन रहना पड़ेगा तुम्हें
समय पर नहीं पहुँचो तो
प्यार को खो दोगे
छोड़कर जायेगी काली निशान
हृदय को घायल करनेवाली
स्पष्ट स्मृति
इसलिए कह रहा हूँ तुमसे
समय पर ही समय के
मूल्य को समझो
और नहीं तो
अफ़सोस के सिवा कुछ भी नहीं मिलेगा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अपने गाँव की याद
- आँसू की बूँद में घर की तस्वीर
- आज़ादी का सपना
- आज़ादी (चन्द्र मोहन किस्कू)
- एक शाम
- जीवन : लड़कियों का
- तुम और मैं
- तुम याद आते हो
- तुम्हारा मीठा चुम्बन
- नगर
- नव आशा की धरती
- प्यार ही तो है
- लड़कियों को बहुत काम है
- वट वृक्ष का इतिहास
- सत्य
- समय (चन्द्र मोहन किस्कू)
- स्मृति अपने गाँव की
- हम औरतें
- हुल के फूल
- विडियो
-
- ऑडियो
-