प्यार ही तो है
चंद्र मोहन किस्कूतुमसे है प्यार
और तुम जन्म-जन्मांतर की
दोस्त हो।
तुम्हारे और मेरे
इस पवित्र प्यार के बीच
भला ग़रीबी-अमीरी का
क्या काम?
उम्र, जाति-धर्म का
क्या अर्थ?
प्यार तो कल-कल बहनेवाले
पहाड़ी झरने का पानी है
नीले आसमान की तरह अनंत
दरिया जैसा गहरा
इतना सुन्दर कि
कमल को ईर्ष्या हो,
सुगंध से
महकाता है चारों दिशाएँ।
फिर . . .
अपनी पहचान
लोगों के सामने दिखाने की
प्यार को ज़रूरत ही क्या?
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