नव आशा की धरती 

15-01-2020

नव आशा की धरती 

चंद्र मोहन किस्कू  (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

निराशा के आसमान में 
एक दिन उदय होगा ही सूर्य 
फूटे छज्जे वाले घर से ही 
दिखता है चन्द्रमा
परती और पथरीली ज़मीन भी 
सदा एक सा  हीं रहेगी 
शांति की खेती होगी ही 
एक न एक दिन 
आनंद के फूल खिलेंगे 
एक दिन अति सुन्दर।


सहारा की कोख भी 
सदा खाली नहीं रहेगी 
वहाँ हरी घास उगेगी 
ठण्डे झरने फूटेंगे  
धान के पौधे के जैसी संतानें
सर हिलाकर नाचेंगी एक दिन।


पुरखों की बातें 
झूठ नहीं होतीं कभी 
निराशा की घने से 
उगेंगे ही 
नव किरण के साथ 
नव आशा के सूर्यदेव।
नव आशा की धरती 
हरी होगी, एक न एक दिन।
 

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