करमहीन 

01-12-2019

करमहीन 

संजीव ठाकुर (अंक: 145, दिसंबर प्रथम, 2019 में प्रकाशित)

लंबी–चौड़ी सड़कें 
फर्राटे भरती गाड़ियाँ 
तुम गाड़ियों से चिढ़ते हो?


ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ 
ऊपर चढ़ती सीढ़ियाँ 
तुम ऊँचाई से डरते हो?


तरह–तरह के मॉल 
पिज़्ज़ा, बर्गर, फ़्रेंच फ़्राई
तुम पेट-दर्द से मरते हो?


तुम मानो या न मानो 
लिखा था बाबा तुलसीदास ने 
तुम्हारे जैसों को ही देखकर –


“सकल पदारथ यहि जग माहीं। 
करमहीन नर पावत नाहीं॥”

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