आज़ादी  (चन्द्र मोहन किस्कू)

01-01-2020

आज़ादी  (चन्द्र मोहन किस्कू)

चंद्र मोहन किस्कू  (अंक: 147, जनवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

देश तो आज़ाद हुआ 
पर, मैं कहाँ आज़ाद हुई 
सर उँचा कर चल सकूँ 
वैसी सड़क कहाँ बनी?

 

देश तो आज़ाद हुआ 
पर, मेरे ऊपर आज़ादी की हवा 
कहाँ चली 
कितने फूल पेट में ही 
मुरझा गए 
कली फूल भी 
कहाँ खिल पाए  
खिलने से पहले ही 
तहस-नहस कर दिए गए।

 

देश तो आज़ाद हुआ 
पर, स्वतंत्र परिचय 
मुझे कहाँ मिल पाया 
कभी मुझे कहते हैं देवी 
कभी नौकरानी  
तुम्हारी दो आँखों से 
मैं मनुष्य ही कहाँ हो पायी?

 

देश तो आज़ाद हुआ 
पर, मैं स्वतंत्र मन से 
कहाँ चल पा रही हूँ 
कह तो रहे हो 
भारत दुनिया का श्रेष्ठ 
पर, देश की सभी 
गलियों से गुज़रते
मुझे डर लगता है।

 

देश तो आज़ाद हुआ है 
पर, हरदिन औरतों के आँसुओं से 
मिट्टी क्यों भीग रही है?
बदलना होगा सखियो
यह सुनहरा भारत वर्ष 
औरतों को इज़्ज़त मिले 
आँसू उनके न गिरें 
खिले फूल जैसी हर दिन 
हँसती रहे।

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