युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच संगोष्ठी संपन्न— ‘समकालीन व्यंग्य: चुनौतियाँ और सीमाएँ’

21 Sep, 2025
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच संगोष्ठी संपन्न— ‘समकालीन व्यंग्य: चुनौतियाँ और सीमाएँ’

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच संगोष्ठी संपन्न— ‘समकालीन व्यंग्य: चुनौतियाँ और सीमाएँ’

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल बीसवीं संगोष्ठी 27 जुलाई-2025 (रविवार) 3। 30 बजे से आयोजित की गई। 

डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव सरिता दीक्षित ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह कार्यक्रम लखनऊ से प्रकाशित सुप्रसिद्ध व्यंग्य पत्रिका ‘अट्टहास’ के प्रधान संपादक एवं लब्ध प्रतिष्ठ व्यंग्यकार रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) की अध्यक्षता में संपन्न हुई। प्रख्यात व्यंग्यकार बी एल आच्छा (चेन्नई) एवं प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमा द्विवेदी मंचासीन हुए। मुख्य वक्ता का परिचय डॉ. सुरभि दत्त (कोषाध्यक्ष) ने दिया। 

कार्यक्रम का शुभारंभ सरिता दीक्षित के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुई। तत्पश्चात् प्रदेश इकाई की अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का शब्द पुष्पों से स्वागत किया। 

डॉ. द्विवेदी ने संस्था का परिचय देते हुए कहा, “युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली (पंजीकृत न्यास) एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत एवं सम्मानित करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का उद्देश्य है। संस्था ललित कलाओं को भी प्रोत्साहित एवं सम्मानित करती है।” 

मुख्य वक्ता प्रख्यात व्यंग्यकार बी एल आच्छा ने ‘समकालीन व्यंग्य:चुनौतियाँ और सीमाएँ’ विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा, “व्यंग्य लोक जीवन से सीधा साक्षात्कार है और विषमताओं के विरुद्ध धारदार अभिव्यक्ति भी। व्यंग्य कमज़ोर के संरक्षण और पाखंड के विरुद्ध प्रतिकार की शक्ति है। व्यंग्य केवल शासन व्यवस्था और सत्ता की विसंगतियों तक सीमित नहीं है बल्कि जीवन के कोने-कोने में झाँकता है पर आज व्यंग्य विधा के लिए अनेक चुनौतियाँ हैं। आज का व्यंग्य अख़बार और दूरदर्शन से जितने विषय उठाता है, उतने जनजीवन से प्रत्यक्ष होकर नहीं। अख़बारों में उसका क्षेत्रफल शब्दों में सीमित है। सत्ता के विरुद्ध लेखन के जितने ख़तरे हैं, उतने ही धर्म और सामाजिक स्तरभेद को लेकर हैं। विचार धाराओं की अपनी-अपनी दलबंदियाँ और राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ हैं। व्यंग्यों की शैलियों की चौखट तोड़कर नयी अभिव्यक्ति के तेवर ज़रूरी हैं। ग्रामीण सहृदयता और जनभाषा के चलित प्रयोगों में व्यंग्य पाठकों से सीधा संवाद करता है।”

विषय पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि, “व्यंग्य विधा आज संक्रमण की मार झेल रही है। नये सर्जकों की भरमार में कई बार ऋणात्मक व्यंग्य अपना मूल और व्यावहारिक स्वरूप को खो रहा है। धर्म और जातीयता पर निशाना साधने में आज वैयक्तिकता की मार झेलता व्यंग्य एकांगी भाव की चुनौतियों की वजह से ख़तरे में है और प्रायः व्यंग्य की करुण भाव की जगह फूहड़ हास्य की प्रस्तुति में सिमटता जा रहा है।” 

संगोष्ठी के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा, “महान साहित्यकार अल्बर्ट कामू ने नोबेल पुरस्कार प्राप्ति के समय 1957 में दिए गए अपने भाषण में कहा था कि एक लेखक को इतिहास निर्माताओं की सेवा में समर्पित नहीं होना चाहिए बल्कि उन लोगों की सेवा में प्रस्तुत होना चाहिए जो जिससे वे पीड़ित हुए। व्यंग्य लेखक को निर्बल, सत्य, न्याय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर होना चाहिए, हालाँकि व्यंग्य-लेखन में आज ख़तरा पहले से अधिक है। व्यंग्य लेखन का उद्देश्य समाज, अर्थ, धर्म और राजनीति से उपजी विसंगतियों पर प्रहार करना है। व्यंग्यकार कोई समाज सुधारक भी नहीं होता है। बड़े खेद का विषय है कि हिंदी के अधिकांश व्यंग्यकार आज भी वही पुराने घिसे-पिटे विषयों पर व्यंग्य लिख रहे हैं। अतः समकाल को बेहतर ढंग से रेखांकित करने के लिए सामाजिक-न्याय और पर्यावरण जैसे नए विषयों को अपने व्यंग्य लेखन में स्थान देना चाहिए।” 

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। सुश्री विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष) शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) डॉ. सुरभि दत्त तृप्ति मिश्रा (सह संयोजिका) डॉ. राशि सिन्हा (बोकारो), सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, प्रियंका पाण्डे, दर्शन सिंह, बिनोद गिरि अनोखा, बी एल आच्छा, डॉ. इंदु सिंह, शोभा देशपांडे, शारदा मद्रा (दिल्ली), कवयित्री प्रमिला पाण्डेय (कानपुर), चंद्रलता यादव (दिल्ली), डॉ. संगीता पांडे, सूरज कुमारी गोस्वामी, शकुंतला मिश्रा ने काव्यपाठ किया। रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि आज की संगोष्ठी बहुत सफल और सार्थक रही। सभी रचनाकारों की विविध रस सम्पृक्त रचनाओं में नवगीत, मुक्तक, कविता, क्षणिका एवं हास्य-व्यंग्य काव्य की प्रस्तुति ने सुन्दर समां-सा बाँध दिया। उन्होंने सभी को बधाई और शुभकामनाएँ दीं और अध्यक्षीय काव्य पाठ किया। 

रमा गोस्वामी, पूनम झा (दिल्ली), डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ) डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. आशा मिश्र ‘मुक्ता’, डॉ. सुषमा देवी, रश्मि तिवारी, भगवती अग्रवाल ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की। 

प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) एवं द्वितीय सत्र का संचालन सरिता दीक्षित ने किया। क्रमशः डॉ. सुषमा देवी और तृप्ति मिश्रा के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ। 

प्रेषक: डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष