ज़िन्दगी उम्र भर की सहेली है

01-11-2025

ज़िन्दगी उम्र भर की सहेली है

मनोज कुमार यकता (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ज़िन्दगी उम्र भर की सहेली है
एक उलझी हुई पहेली है। 
दरिया है ये समंदर की, पूछो न तुम, 
फिर भी प्यासी है, ये अकेली है। 
कहो चाहे इसको काँटों का वन, 
कर सको तो करो ये पार तुम वन। 
रहना तो है इसके संग हरदम, 
कहाँ जाओगे छोड़ इसको तुम? 
ये राग है उस रागों की रागिनी, 
जो तपते हैं होंठों पे ले दामिनी। 
ये मासूम है और चंचल भी ये, 
जो चमकती है बनके ये चाँदनी। 
ये करुणा है, प्रिय और प्रीतम भी है, 
रहना साथ है इसके, ये ग़म भी है। 
ये सरल है, सहज है, कठिन भी है, 
ये बहारों के हँसते मौसम भी है। 

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