तू तू में गुज़र जाता है वक़्त

01-11-2025

तू तू में गुज़र जाता है वक़्त

मनोज कुमार यकता (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

तू तू में गुज़र जाता है वक़्त, 
मैं मैं में ढलती है ज़िंदगी, 
थोड़ी सिहरन चाहिए थकान बहुत है। 
और जीने के लिए हर ख़ुशी, 
पल भर के बिछड़न में, 
कितनी रुलाती है ज़िंदगी, 
शाम होते हुए याद आते हैं वे, 
जिसे जाना था बहुत दूर, 
चुराके हँसी के नूर। 

वे मेरे से दुखी हैं, 
अपनी ही भीड़ में गुम हैं। 
जिसने सँभाल कर रखा दिल मेरा, 
हर मुश्किल से लड़ते रहे। 

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