ज़िन्दगी पहलू नहीं पहेली है
प्रतिभा पाण्डेय ‘प्रति’
ज़िन्दगी परिणाम कम परीक्षा ज़्यादा लेती है,
ख़ुशियों से खेलती बहुत, दुख ज़्यादा देती है।
इरादों पर बार बार चोट कर निराशा जगाती,
जब हों हताश, निराशा में आशा उपजा देती है।
कभी निहारती अपने को, कभी भूल जाती
शृंगार करती हो बेख़बर, प्रेम जगा देती है।
वक्तव्य कब देना, कब रुक जाना, इशारे ये,
वक़्त के पहले, बाद इशारा से समझा देती है।
विशेषता है कि ज़िन्दगी पहलू नहीं पहेली है,
सुलझा कर समस्याओ को अनुभव देती है,
किताब जीवन पर्यन्त पढ़ने की करो कोशिश,
मैं साकार सगुण हूँ! स्वयं चिल्लाकर बता देती है।