ज़िन्दगी एक फ़र्ज़ अदाई है

15-11-2024

ज़िन्दगी एक फ़र्ज़ अदाई है

डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ज़िन्दगी एक फ़र्ज़ अदाई है। 
जैसे तैसे भी हो बिताई है॥
 
दर्द तो, घर, बना के बैठा है। 
ऐसा लगता है घर जमाई है॥
 
ज़र्रे ज़र्रे की एक सरहद है। 
 किसने सरहद वहाँ बनाई है॥
 
घूमता किसमें एक ज़र्रा है। 
कौन करता ये रह नुमाई है॥
 
सक जाले में घूमता हर पल। 
होने वाली नहीं रिहाई है॥

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