डॉ। कौशल किशोर श्रीवास्तव

है धन घर में, चाकू कर में
और शहद तुम्हारी बोली में। 
हम सड़क छाप के पास बची
बस गाली देने होली में॥
 
जब लक्ष्मी तुमको ठुकरा दे, 
बेलेन्स बैंक का मिटने पर। 
लक्ष्मी के दर्शन कर लेना
आकर मेरी हम जोली में॥
 
तुम लेते रहना जीवन भर, 
मेरी रोटी मेरा पैसा। 
तुम तंग मत करो, भंग अभी
छलकाती हमें ठिठोली में॥
 
है महल तुम्हारा शान्ति निलय
सन्नाटा छाया रहता है। 
जीवन जीना हो आ जाना
मेरी छोटी सी खोली में॥
 
बटुये में पैसे बचते थे
सब्ज़ी आती थी थैली में। 
बटुये में सब्ज़ी आती है अब
पैसे जाते है झोली में॥
 
थे पहलवान मेरे साले, 
शादी में मुझको यूँ भेजा। 
पत्नी थी आगे घोड़े पर। 
मैं पीछे पीछे डोली में॥’
 
होली का हुड़दंग हुआ
हाहा, ही ही, हू हू, हें हैं। 
हल्ला हंगामा हलचल है। 
हम हुरियारो की टोली में॥

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