कई ख़ुदा मुझको यहाँ तक लाए हैं
डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव
कई ख़ुदा मुझको यहाँ तक लाए हैं
कई ख़ुदा आज़माय और ठुकराए हैं
कितनों ने की है मेरी तारीफ़ और
मैंने कितनों के क़सीदे गाये हैं
ख़ुदा तूने मुझको जब धोखा दिया
मैंने कई लोगों से धोखे खाए हैं
मैं अलग बिलकुल यहाँ रह गया हूँ
मैंने कितने ही अज़ीज़ आज़माए हैं
किनारा दिखता नहीं है सामने
हर क़दम पर जबकि साहिल आये हैं
घर मेरा ख़ाली नहीं हो रहा है
ग़ैरों ने कोने कई हथियाए हैं
तन्हा मुझको भटकना है ज़िन्दगी
साथ कितने ठिकानों के साये हैं