वो इश्क़ के क़िस्से
अमित राज ‘अमित’वो इश्क़ के क़िस्से, पुराने हो गए,
उनसे बिछड़े हमें, ज़माने हो गए।
शमा तो जली इंत्ज़ार में रात भर,
परवाने के झूठे सब, बहाने हो गए।
दिल बहलाने को निकले जाम पीने,
अफ़्सोस बन्द सब मयखाने हो गए।
बहारों के संग गिरे थे जो पत्ते,
उनसे दूर उनके ठिकाने हो गए।
साथ निभाने को आये जो परिन्दे,
सबसे पहले वो बेगाने हो गए।