"अल्ला के नाम पर दे दे माँजी.... "

"क्या चाहिए?"

"दस-बीस रूपये।"

"क्या करेगा?"

"दो-तीन दिन से भूखा हूँ, थोड़ी पेट भराई हो जायेगी।"

"हट्ठा-कट्ठा गबरू नौजवान होकर दूसरों के आगे हाथ फैलाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती, लानत है तुम पर और तुम्हारी ज़िन्दगी पर। मेहनत कर, अल्ला तेरी झोली ऐसे भर देगा कि फिर कभी दूसरों के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"

वह लज्जित होकर चुपचाप आगे बढ़ गया।

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