वीरों की याद
विवेक कुमार ‘विवेक’
मैं केशव का पंचजन्य हूँ गहन मौन में खोया हूँ
मैं अपने देश की आज़ादी के बारे में लिखते-लिखते रोया हूँ
भारत माँ की “गहन शीलता” देखी मैंने आँखों से
क्यूँ थक कर बैठ गये ये बसंती जज़्बातों से
आँखों से देखी है मैंने उन गद्दारों के आँसू को
घर की तुलसी रोई होगी देखकर उन जज़्बातों को
मैं भारत माँ के चरणों में शीश झुकाने आया हूँ
मैं उन वीरों की याद शहादत दिखलाने मैंं आया हूँ
उन वीरों के चरणों में मैंं शीश झुकने आया हूँ
मैं भारत के संविधान को स्वर्ग बताने आया हूँ
मैं अपनी कविता को सच्चाई दिखलाने आया हूँ
इस समाज में फैली दुर्दशा का “मर्म” समझाने आया हूँ॥
उन वीरों के चरणों में मुझे स्वर्ग दिखाई देता है
भारत माँ के चरणों में मौन दिखाई देता॥
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अत्तिसुंदर कविता