वर्णों में कथा माँ की
प्रभात कुमारअ ने कहा
आ कर मुझे माँ ये बता
इ तना प्यार तुम से ले
ई श्वर कहाँ हो गया लापता
उ त्तम प्यार से सिंचित कर
ऊ पर बैठे देव सब देख
ऋ षिकेश पावन वेश में
ए क माँ के आँचल में बसा
ऐ सी अनमोल गाथा है
ओ माँ तुम्हारी अनमोल कथा है
औ रों को ज्ञान ये बाँटे
अं जलि में स्नेह भर लाए
अः कष्टों को झेल कर
क र्मों को तर कर
ख त्म कर सब कष्टों को
ग र्व है हम सब की
घ र को जो सँवारती
च लती रहती एक पैर सारी
छ प्पर उसकी आँचल है
ज ग में सबसे प्यारी है
झ रने जैसी निर्मल धारा
ट कटकी देख हमें
ठ प ठप प्यार भरे
ड ब डब लोरी गा कर
ढ केल कष्टों को भगा कर
त ब आँचल फैलाती हो
थ कावट तुम हटाती हो
द वा तुम्हारी अनमोल है
ध न धान्य से भी प्यारी है
न दी सी निर्मल काया
प र्वत भी देख शर्माया
फ ल फूल सी कोमल तू
ब ल से छली न तू
भ ला याद किसे रहता
म मता की ये कथा
य ह तो है माँ की व्यथा
र चना अनुपम प्रभु की
ल ला लला जब पुकारे
व शीभूत हो जग सारे
श र्म से ताज़ लहराए
ष ड्यंत्र पास न आवे
स दा ममता बरसाए
ह म बच्चों को भावे
क्ष मा दान की देवी तू
त्रा ण कर सब कष्टों को
ज्ञा न पाठ पढ़ाती है
माँ तू सबसे प्यारी है॥
2 टिप्पणियाँ
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वर्णों में माँ को लेकर अत्यंत सार्थकतापूर्ण अभिव्यक्ति दी है आपने प्रभात जी। आपको साधुवाद देती हूँ।
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अच्छी कविता