वैश्विक धरातल पर उकेरी गयी नई कविता

01-11-2024

वैश्विक धरातल पर उकेरी गयी नई कविता

संजय अनंत (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


(हरिहर झा व उनका काव्य सृजन)

समीक्षित पुस्तकें:
भीग गया मन (काव्य संग्रह)
लेखक: हरिहर झा 
प्रकाशक: हिन्द युग्म, हौज़ ख़ास, नई दिल्ली

फुसफुसाते वृक्ष कान में (काव्य संग्रह) 
लेखक: हरिहर झा 
प्रकाशक: अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली

दुल्हन-सी सजीली (काव्य संग्रह)
लेखक: हरिहर झा  
प्रकाशक: आइसेक्ट पब्लिकेशन, एम पी नगर भोपाल

Agony Churns My Heart
लेखक: हरिहर झा 
प्रकाशक: ऑनलइन गाथा, लखनऊ

प्रश्न ख़ुद बेताल था (काव्य संग्रह)
लेखक: हरिहर झा  
प्रकाशक: इंडिया नेटबुक प्राइवेट लिमिटेड नोएडा

ये विज्ञान के विद्यार्थी का सृजन संसार है, इस में पुरातन कुछ भी नहीं, छंद-ताल-लय सबसे मुक्त, सब कुछ नया, नए प्रयोग, पिछले दशकों में हिन्दी काव्य में पल्लवित नई कविता की परंपरा को आगे बढ़ाने का सफल प्रयास, एक प्रकार की ताज़गी, मानो उपवन में अभी-अभी खिले पुष्पों की महक . . .

अज्ञेय जी, शमशेर बहादुर जी, धर्मवीर भारती जी की प्रयोगवादी परम्परा को नए विचारों, भावों के साथ हिन्दी साहित्य को वैश्विक स्वरूप देते, झा जी के चार काव्य संकलन और इनमें संगृहीत उनकी अनेक श्रेष्ठ नई कविता और अकविता और दोनों ही आधुनिक हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ हैं और झा जी को दोनों में प्रवीणता प्राप्त है। 

वे हिन्दी भाषा में अपने भाव विचार बड़ी ही सहजता से अपने सृजन में व्यक्त करते हैं, किन्तु जब आप उनकी अंग्रेज़ी भाषा में लिखी कविता पढ़ते हैं, तो आप उनकी बहुमुखी प्रतिभा से रूबरू होते हैं। पढ़ते समय हमें ऐसा लगता है की हम किसी परंपरागत क्लासिक ब्रिटिश कवि की लेखनी से निकलते भाव प्रवाह को आत्मसात कर रहें हों। झा जी के लिए अंग्रेज़ी पराई भाषा क़तई नहीं है, अंग्रेज़ी में भी उनकी लेखनी उतनी ही प्रवीणता से भाव प्रगट करती है, जितना उनकी मातृभाषा हिन्दी में। मानो वीणा वादन में प्रवीण हाथों ने वायलिन को भी आत्मसात कर लिया हो, टेम्स और गंगा का अद्भुत संगम हुआ हो . . .

उनके कविता संग्रह ‘Agony Churns My Heart’ को पढ़ते समय उतना ही आनंद आया, जैसा वर्षों पूर्व महान कवि थॉमस ग्रे की Elegy Written ln Country Chruchyard सहित उनकी प्रमुख रचनाओं का हिन्दी में काव्य अनुवाद करते समय आया था। 

इस संग्रह की प्रथम कविता ही, झा जी की प्रतिनिधि कविता मानी जा सकती, शीर्षक है My Death, आप शीर्षक से समझ गए होंगे की कवि ने इस कविता में क्या वर्णन किया होगा: 

The Death has drawn a line on me . . .

फिर वे अनुभूत करते हैं कि, वो यानी मृत्यु उनके निकट आ रही है:

। see the death coming near me . . .

इसके पश्चात मृत्यु से साक्षात्कार का सजीव चित्रण वे करते हैं, मृत्यु के पश्चात वे अनंत ब्रह्मांड की ओर अग्रसर हैं:

What clouds reveal, wet fragrance । feel
From earth to cosmos, umbrella opens up . . .

और कविता के अंत में, वे कहते हैं . . . 

Peace everywhere ।’m flying in the sky. 
Order from heavens passing my ears
Take me my dear with joy and cheers
People around me why shedding tears? 

ये अश्रु क्यों हैं आँखों में? मेरी मृत्यु को सहजता से लो, शरीर त्याग कर जो मैं आत्म रूप इस अनंत आकाश में विचरण कर रहा हूँ, आनंद में हूँ, इसलिए वो अपने स्वजन से कह रहें है, मेरे जाने की घटना पर शोक न करो, इसे with joy & cheers स्वीकार करो। 

यदि आप झा की प्रतिभा को, उनके काव्य संसार में मुक्त विचरण करना चाहते हैं तो हमें उनका ये अंग्रेज़ी भाषा में लिखा काव्य संग्रह भी अवश्य पढ़ना होगा। हम किसी भी कवि का, भाषा के बंधन में सही विश्लेषण नहीं कर सकते, यदि उस ने हिन्दी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में भी अपने भाव व्यक्त किए हैं, कुछ सृजन किया है, तो वो भी सहर्ष स्वीकार्य है। इस संग्रह में झा जी की अनेक रचनाएँ हैं, जो उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ मानी जाएँगी, भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य को समृद्ध करने वाली, इनमें The cave, Lotus in the Mud, Agony Churns My Heart, ने मुझे बहुत प्रभावित किया।

कविता The Cave में उनकी कल्पना अपने चरम पर है, यहाँ cave कोई गुफा नहीं है, माता का गर्भ है, जिस में वो नौ माह तक हैं। एक शांत जीवन, सब कुछ बिना कुछ किए मिल रहा है, कुछ नहीं करना है, किन्तु नौ माह पश्चात्, इस गर्भ में मुझे भविष्य के सांसारिक संघर्ष के लिए तैयार किया जा रहा है। झा जी लिखते हैं:

what a wonder cave it is
preparing for a struggle . . .

कविता Agony Churns My Heart, जो इस काव्य संग्रह का शीर्षक भी है, एक उम्दा कविता है। भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य में, झा जी का कालजयी योगदान . . . 

इस लघु किन्तु गहरे भाव से भरी इस कविता में कवि स्वयं कह रहें है, यह काव्य उनके हृदय में वेदना मंथन से प्रस्फुटित हुआ है:

Agony churns my heart
and lo! a poem emerges with a smile! . . . 

विश्व शान्ति की कामना करती ये कविता सम्पूर्ण मानवता को सम्बोधित कर रही है:

Singing peace in the battlefield? 
The world is shocked . . .

जब यह वेदना, ये कष्ट ही मेरे मुख से A poems of love यानी प्रेम की कविता को प्रस्फुटित करते हैं:

When agony surrounds my lips
A poem of love comes out! . . . 

निश्चित ही एक श्रेष्ठ कविता, जो देश, प्रान्त, रंग, धर्म की सीमा से ऊपर उठ कर, मानवता का सन्देश देती है। अब हम झा जी के काव्य संसार में आगे बढ़ते हैं और उन के हिन्दी भाषा में प्रकाशित चार काव्य संग्रह ‘भीग गया मन’, ‘फुसफुसाते वृक्ष कान में’, ‘दुल्हन-सी सजीली’, ‘प्रश्न ख़ुद बेताल था’, की ओर अपनी इस यात्रा में कुछ क़दम आगे बढ़ाते हैं।

उनके काव्य संग्रह ‘फुसफुसाते वृक्ष कान में’ से, कविता ‘कैसे लिखूँ’ एक सांकेतिक भाषा में कुछ गहरी बात पाठक तक पहुँचाने का प्रयास है:

उलझा दिल इक झंझा में
दिमाग़ समीकरण में
दुर्योधन मन का बैठा
द्रोपदी के चीरहरण में
ऐसे में गीत क्या गाऊँ
डूब गयी ओजस्विता
कैसे लिखूँ मैं कविता . . .

कवि कहता है, मन उसका पवित्र नहीं रहा, उसके अंतर भी सांसारिक बुराइयाँ आ गयी है, वो दूषित हो चुका है, कवि सांसारिक पतन को देख रहा है। हर ओर केवल चापलूस हैं, झूठे महिममंडन का ज़माना आ गया है। सत्य लगभग पराजित सा है।

झा जी ने सब कुछ बड़े ही प्रतीक रूप में कहा है; निश्चित एक बेहतरीन रचना है। इसी संग्रह की एक कविता ‘अपराधबोध’ से अपने अंतर मन को जोड़ पाया। पढ़ते समय अनुभूत हुआ कि शायद मैं भी यही कहना चाहता हूँ। इस कविता की अंतिम दो पंक्तियाँ:

बोध गहरा पाप का जब हो गया
रुलाता अपराध, बस ग़ज़ब ढाता . . . 

आप के रचना संसार में, आप के काव्य संग्रह ‘भीग गया मन ‘ की एक रचना ने हृदय को स्पर्श किया, भावुक कर दिया:

बाढ़ पलकों पर रुकी कब तक रहोगी
आँसुओं बह जाओ तो अच्छा रहे . . .

यह कविता, आँसुओं को सम्बोधित करती है, किन्तु वास्तव में अंतर मन की पीड़ा है। वैसे ये सच भी है आँसू अपने साथ मन की व्यथा, पीड़ा को, अपने में समेट, बहा कर ले जाते हैं। कवि इस कविता में और क्या कहता है, पढ़िए . . .

दैत्य पीड़ा दे अगर हँसते रहें
क्या सिमटकर तुम कलपती ही रहोगी
शिष्ट मर्यादा तुम्हें रोके बहुत
घुटन में रुक कर तड़पती ही रहोगी . . .

पाठक इस कविता को एक बार को पढ़े, तो वो निश्चित ही इसे पुनः पढ़ना चाहेगा, क्योंकि कविता के मूल भाव से वो अपने को जुड़ा हुआ पाता है। 

झा जी की एक और महत्त्वपूर्ण कविता, उनके काव्य संग्रह ‘भीग गया मन’ से, कविता का शीर्षक है ‘मुग्ध होकर’, जो निश्चित ही उनकी श्रेष्ठतम कविताओं में से एक मानी जाएगी (Published in “Hidden Treasure” a bilingual anthology by Melbourne Poets Association)। 

यदि इस कविता की गहन व्याख्या की जाय तो, दस से बारह पृष्ठ से कम में सम्भव नहीं होगी, हिन्दी भाषा में लिखी उनकी अब तक जितनी कविताएँ पढ़ीं, उनके में सर्वश्रेष्ठ . . .

मुग्ध होकर देख रहा हूँ
और बह रहा हूँ
अस्तित्व की बाढ़ में
तेरी अविजित मुस्कान
इधर झनझनाती तांत्रियों में शुरू
सामूहिक गान
तू झुलसा रही मेरे अहं को
उमड़ रहा न जाने क्या
झुकती नज़र कभी उठती नज़र
पर इसके माने क्या . . . 

उनके काव्य संग्रह ‘प्रश्न खुद बेताल था’ से एक महत्त्वपूर्ण रचना का उल्लेख करना आवश्यक है, कविता का शीर्षक है—प्रस्तर युग का मानव मैं, ये कविता आप को गहन चिंतन में ले जाएगी। 

विद्रोह करूँ, भिड़ जाऊँँ
सहन नहीं कुछ कर सकता
किससे कैसे लड़ जाऊँँ, 
मुझे अभी मालूम नहीं . . .

हमें सभी ने बचपन में बेताल की कहानियाँ पढ़ी होंगी। दशकों पूर्व दूरदर्शन पर ‘विक्रम और बेताल’ धारावाहिक भी प्रसारित होता था। झा जी के इस काव्य संग्रह का शीर्षक है, ‘प्रश्न खुद बेताल था’। इसी शीर्षक से, उनके इस संग्रह की प्रथम कविता भी है, जैसे बेताल, राजा के कंधे पर सवार हो हर बार उन से प्रश्न करता है। वैसे ही संसार के सामयिक विषय से उठते प्रश्न कवि स्वयं अपने अंतरमन से पूछता है। कभी उसके उत्तर मिलते हैं, तो कभी नहीं . . .

बेताल की राजा को सुनाई गयी कहानियों और उन कहानियों पर बेताल के प्रश्न व विद्वान राजा विक्रमदित्य द्वारा दिए गए उत्तर, भारतीय कथा साहित्य में ये कालजयी हैं। 

‘प्रश्न ख़ुद बेताल था’, एक प्रयोगवादी कविता है, जहाँ कवि के अंतर उठते प्रश्न बेताल की भूमिका में हैं और वो स्वयं उस राजा की तरह उनके प्रश्नों के उत्तर देने में प्रयासरत . . .

प्रश्न ख़ुद बेताल था
झूलता टँगा हुआ . . .

सार्वजनिक जीवन हो या व्यक्तिगत, निरंतर हावी होते दोहरेपन ने कवि के अंतर में मंथन उतपन्न कर दिया है . . .

प्रश्न थे बाज़ार के
संसद में चिंगारी
भाषण में शोले थे
अंधड़ से क्षति भारी
बाद में खुला रहस्य, व्यर्थ में दंगा हुआ . . .

इस तरह की कविताएँ हिन्दी काव्य जगत में नित नए प्रयोग को, नए तेवर की कविताओं की आदर्श बनती है। झा जी इसी शृंखला की मज़बूत कड़ी हैं। इसी भाव को आगे बढ़ाती एक कविता इसी संग्रह में है, शीर्षक है ‘सच या झूठ’, वे लिखते हैं:

सत्य क़ैदी झूठ का, गर
दक्षता हो बोलने में
मिथ्या बना दे बंदिनी
आकर फँसे सच जाल में . . .

हिन्दी साहित्य के शाश्वत विषय कृष्ण राधा पर झा जी कविता ‘क्षण क्षण जीवन’, ‘पाषाण जगत में’, ‘मोहित हूँ तुझ में देख रहा’, ‘चक्र ऊपर चक्र है’, ‘चलते भीतर अंतरद्वन्द’, ‘शंखनाद क्रान्ति का’, ये सभी इस संग्रह की वो कविताएँ है, जिस ने हमें बहुत प्रभावित किया, पढ़ते समय, अंतर में एक चिंतन को जन्म दिया, यही किसी रचनाकार की सार्थकता होती है। 

झा जी के काव्य संग्रह ‘दुल्हन-सी सजीली’ में एक कविता, जिस का शीर्षक है ‘न्यूटन जी'।

सभी विज्ञान के विद्यार्थी, ये जानते हैं कि न्यूटन ने गति के तीन नियम दिए; और उनका तीसरा नियम कहता है कि, हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। 

कवि ने इसका व्यंग्यात्मक अनुप्रयोग, अपनी इस कविता में किया है। पश्चिम उत्पादन बढ़ाने में लगा है और हम इसकी प्रतिक्रिया में आबादी बढ़ाने, वे लिखते हैं:

भौतिकता बढ़ती पश्चिम में
उत्पादन ज़्यादा करते
प्रतिरोध में शिशु आत्माओं
सी दुनियाँ को हमें भरते . . . 

इस संग्रह की एक और कविता पर मेरी लेखनी अवश्य लिखना चाहेगी, कविता का शीर्षक है, ‘लिखना बाक़ी है’।

दरअसल इस कविता में मैं ही नहीं, हर वो व्यक्ति इसे पढ़ कर अपनत्व का भाव जागृत करेगा, उसे आत्म कथ्य ही लगेगा, जो कुछ लिखता है, कुछ सृजन करता है . . .

शब्दों के नर्तन सी शापित
अंतर्मन शिथिल
लिखने को तो बहुत लिखा
पर कुछ लिखना बाक़ी है . . .

इस संग्रह की ‘दुल्हन सी सजीली’, ‘खिड़की बंद’, ‘मौत का एहसास’, ‘ राह उल्टी मनुज की’, ‘शोक में डूबा अशोक’ रचनाओं ने मन के तार को झंकृत किया, पढ़ने में आनंद आया और, मेरे जैसे काव्य प्रेमी को भर पेट भोजन वाली तृप्ति की अनुभूति हुई।

शरद, वसंत, फागुन सब अब जा चुके हैं, ये जेठ की भीषण तपिश है, किन्तु आम के वृक्षों पर लदे आम अब पक चुके हैं, मीठे, रसीले हो चुके हैं। उनकी मीठी महक सर्वत्र फैल रही है, ऐसा ही कुछ अनुभूत होता है, जब आप झा जी के सृजन को पढ़ते हैं, आत्मसात करते हैं, आम पक चुके हैं। उन्हें पढ़ते समय इसी मिठास का अनुभव होता है, यात्रा मानो अंतिम चरण में पहुँच चुकी है। दूसरों को बताने के लिए जीवन यात्रा के असंख्य खट्टे-मीठे अनुभव हैं . . .

झा जी के विस्तृत सृजन संसार की यात्रा, किसी छोटे से टापू पर लंगर डालने जैसा क़तई नहीं है। ये किसी महाद्वीप की, किसी बड़े ग्रह की यात्रा करने जैसा है। आप अनेक विषयों को, अंतरमन के भाव के भिन्न-भिन्न स्वरूप व भौतिक संसार के लगभग सभी मुद्दे, प्रकृति-पर्यावरण से लेकर सार्वजनिक जीवन में आए मूल्यों के पतन तक, सम्पूर्ण विश्व के मानव को सम्बोधित करती रचनाओं से लेकर विशुद्ध-ठेठ भारतीय सोच समझ व्यक्त करती रचनाएँ, इनके इन काव्य संग्रह के संग्रहालय में समीप से देखेंगे, अनुभूत करेंगे . . .

आप पाठकों से यही कहूँगा—आप झा जी को पढ़िए, आनंद आएगा। मन में चिंतन उत्पन्न होगा किन्तु पारम्परिक कविताओं में मिलने वाले रस, यहाँ आप को नहीं मिलेगा। ये नई कविता और अकविता का सृजन संसार है—शुष्क है, कठोर है, मन नहीं, मस्तिष्क को प्राथमिकता है। सांकेतिक भाषा में कवि अपने विचार व भाव रखता है और आप को किसी अनुभवी राजनयिक की तरह उन्हें पढ़ना है, शब्दों की बाह्य परत को खोल अंतर प्रवेश करना है। झा जी का रचना संसार आमजन के लिए नहीं है। ये मंचों पर पढ़ी जाने वाली कविताएँ क़तई नहीं हैं, जिन्हें सुन कर श्रोता वाह-वाह करता है। यहाँ सब कुछ परिपक्व, उच्च श्रेणी का है। 

ये एक ऐसे व्यक्ति का सृजन संसार है, जिस ने दुनिया देखी है, उसके प्रति अति संवेदनशील रहा है। इतनी विविधता, जीवन से जुड़े लगभग हर विषय पर कवि ने कुछ न कुछ अपनी लेखनी से सृजित किया है। 

वे वैश्विक भी हैं और विशुद्ध सनातनी भी। ग़ज़ब का संतुलन है। इतने वर्षों से ऑस्ट्रेलिया में हैं, हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी भाषा में भी उनकी लेखनी साहित्यिक है। उनके भावों को अभिव्यक्ति इस भाषा में भी मिल जाती है। अब तक जितना भी प्रवासी भारतीयों द्वारा सृजित साहित्य पढ़ा है, उस में भारत के प्रति अतिशय प्रेम झलकता है, अपनी माटी से जुड़े रहने की ललक, भारत में बीते अतीत से लगाव स्वाभाविक है। झा जी का रचना संसार भी इस से अछूता नहीं है, किन्तु विस्तृत अध्ययन का परिणाम ये हुआ कि मानो कोई वीणा को झंकृत करने वाले हस्त, वायलिन से भी कर्णप्रिय संगीत उत्पन्न करने में परांगत ह गए हों। मानो उस ने ब्रेड बटर अवश्य अपना लिया हो किन्तु उसकी जिह्वा दही-चिवड़ा, लिट्टी-चोखा की कामना करती हो . . . 

कालिदास की शकुंतला और विलियम शेक्सपियर की ओफिलिया का विरह, प्रेम सब कुछ एकरस हो गया हो . . . 

श्री हरिहर झा जी का सृजन संसार, सच्चे अर्थों में किसी वैश्विक मानव द्वारा रचित साहित्य है, यही उनकी पहचान है। 

समीक्षक: संजय अनंत

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