अंतर प्रवाह

15-04-2024

अंतर प्रवाह

संजय अनंत (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

तुम शायद फिर आओ
हम फिर नदी के किनारे बैठ
मौन ही सही, शब्द बंधन से मुक्त
कुछ साझा करेंगे, जिसे
हमारे अंतर मन ही समझ पाए
वेदना, पीड़ा, सुख, आनंद
ये तो प्रवाह है तरंग है
जो तुम से निकल मुझ में प्रविष्ट हो
पुनः तुम तक पहुँचने को आतुर
अब तुम ही कहो संसार की
कौन सी भाषा का शब्द संसार
इसे व्यक्त कर पाएगा
जो तुम्हारे मौन से संतृप्त है
अंतर मेरे छू कर जाता है
शब्दहीन किन्तु वृहत रच जाता है
मनन चिंतन में समाहित हो
एकरस हो जाता है
शायद आदि ब्रह्म ने इस
शब्दहीन अंतर वार्ता को
हम दोनों के लिए ही रचा
इस एकांत की अपनी गरिमा है
शब्द, प्रहार बन
इसकी मर्यादा तोड़ेंगे
जो तुम्हें मुझे स्वीकार नहीं
ये आशा नहीं स्वप्न नहीं
विश्वास है फिर तुम्हारे
सानिध्य बैठ
शब्दहीन अंतर प्रवाह से
बाते करेंगे, सर्वत्र फैले
मौन को नमन करते
आनंद के चरम को
अंतर धारण करेंगे
धैर्य की गागर न छलके
प्रतीक्षा हो न अंतहीन
नदी तट पर पसरे मौन से
पूछता हु, मन को ढाढ़स देता हूँ
सुनो ये मेरा स्वप्न नहीं
व्योम में गुंजायमान्‌ आकाशवाणी है
विश्वास है, अनंत तप का तेज है
तुम्हें फिर आना है
तुम्हें फिर आना है . . .!!

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