उपवन के गीत

01-02-2025

उपवन के गीत

डॉ. हिमाँशु कुकरेती (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

उपवन के गीत 
जो बनाते थे कभी मीत 
चल चुके हैं वो दिन 
जीता है उपवन 
अब उन गीतों के बिन। 
 
अब नहीं आते 
वो खग भी 
नहीं पड़ते यहाँ 
वो पग भी। 
 
क्यों रूठ गई वो बयार? 
बसंत भी न आया इस बार! 
सावन, 
अब तो मुँह मोड़ चुका है 
फूल भी अब, 
खिलना छोड़ चुका है। 
 
सूख चुकी है यह घास 
कोई न आता अब मेरे पास 
वो बूँदें, गिरती थी जब कभी 
फैल जाती मेरे अंजुरी तभी। 
 
उन नन्हे पैरों को, 
गिरने पर 
उठाया था मैंने 
अपने सीने पर। 
 
पर क्यों मेरे अरमान 
आज फिर से चीख गए हैं 
नहीं आएँगे लौटकर, 
वो पैर
अब चलना सीख गए हैं! 
अब चलना सीख गए हैं!! 

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