हाँ, यह प्रेम! 

01-03-2025

हाँ, यह प्रेम! 

डॉ. हिमाँशु कुकरेती (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हाँ, यह प्रेम, 
क्लांत सृष्टि का 
शेष अंश। 
हृदय के 
गर्भ में छिपा, 
मौन के 
अधरों पर 
थमा। 
जन्मा उसी क्षण, 
समय 
जहाँ रुका। 
उद्गमहीन, 
अनंत, 
शाश्वत। 
हृदय के आवरण में, 
निश्चल, 
निर्मल, 
अनवरत। 

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