उदास गली का कुत्ता 

15-01-2023

उदास गली का कुत्ता 

आनन्द कुमार राय (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

प्रस्तुत कविता में प्रतीकों का जो प्रयोग हुआ है इसमें:
मालिक= देश और राजनीति का संचालन करने वाला, मंत्री, मुख्यमंत्री और देश का भाग्य विधाता है। 
बहू= सरकारी कर्मचारी, विधायक, सांसद, अन्य छोटे स्तर के जनप्रतिनिधि, उनके कार्यकर्ता आदि हैं। 
कुत्ता= वोट देकर उनको उस स्थान पर पहुँचाने वाली जनता है। 
उदास गली = वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक वातावरण।

  

उदास गली का कुत्ता 
जब शेर की तरह 
दहाड़ता है 
तो घर का मालिक 
उसे डाँटता है 
कभी खाने के निवाले 
उसे और चाहिए होते तो 
कुत्ते को वह 
कुत्ते की ही तरह 
काटता है 
जब उसे 
कोई डर खाता है 
तो लतखोरों की तरह ही 
उसे चाटता है 
और डर ख़त्म हो जाने पर 
बंद कमरे में 
बंदरों-सा नाचता है
उसे यूँ ही अकेले
बाहर
भौंकने को छोड़कर
बंद कमरे में ही
देश का जायज़ा
बाँचता है
बेवजह
पुश्तों के लिए पुश्तैनियाँ
खाँचता है
कभी कुत्ते की परवाह
उसे हो आती है 
उसके घर की बहू 
दो रोटी 
फेंक आती है
वह दो रोटियाँ 
जिसे कितनी रोटियों को 
चुराने से बचा 
शेष था 
समझकर 
फेंकने को कहा था 
बहू पर भरोसा करके
पर भूखी बहू भी इतनी भूखी थी
कि उसका
आधा से ज़्यादा ही
खा जाती है
उसे यह तो 
मालूम ही था
इसीलिए तो वह
ख़ुद नहीं आया 
फेंकने
कुत्ता
कुत्ते की भी ज़िन्दगी
जी रहा है कि नहीं
यह तक नहीं आया
देखने
कुत्ते को भी इंतज़ार है
कि कब घर छोड़ दे
पर उस सूनी गली में
कोई मालिक 
कुछ सालों तक 
आएगा नहीं 
रोटियाँ सेकने
दूसरी गली के 
कुत्तों की भी 
यही हालत है 
इसलिए ख़ुद ही 
किसी दूसरे कुत्ते की 
गली को जाना छोड़ दिया है
अपनी क़िस्मत 
अपने हाथों जो लोढ़ दिया है
अब कहीं आसमान से
गिरते 
चिड़ियों के बीट में 
दाने खोजते 
अपने झूराये दाँतों से 
अपने रोएँ नोचते 
बस जिए जा रहे हैं
सपनों के सहारे 
सपने जोतते
उन्हें अब कोई कुत्ता भी नहीं पुकारता
क्योंकि वक़्त पड़ने पर
उन्हें शेर बोल दिया जाता है
जिस जूते को सर पे रखता हुआ
मालिक एक बार गिड़गिड़ाया था
वक़्त निकलने पर
कुत्ते को उसी जूते से मार दिया जाता है
अजीब विडंबना है इस मालिक की, देखो
कुत्ता कमाता है 
तो वह खाता है
और घर भर जाने के बाद अपना
कुत्ते को कमाने भी 
नहीं दिया जाता है। 

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