स्त्री
विनोद दूबे
माँ, बहन, मित्र, प्रेमिका,
सबमें मैंने देखी थोड़ी-थोड़ी स्त्री,
किन्तु विवाह के बाद पत्नी से मिल,
मूड स्विंग जैसे नये टर्म सीखे,
मैंने एक ही स्त्री में कई रूप देखे,
पत्नी के साथ चौबीसों घंटे गुज़ार,
मैंने स्त्री को सबसे ज़्यादा समझा,
हम पुरुष तंज़़ कसते रहे कि,
स्त्रियों को ब्रह्मा भी न समझ पायेंगे,
तो यह सच है क्योंकि,
ब्रह्मा भी पुरुष ही ठहरे,
नहीं ले आ पाए इतना निश्छल मन,
कि समझ लें स्त्री को आसानी से,
हर चीज़ में नफ़ा-नुक़सान ढूँढ़ता पुरुष,
नहीं बचा पाया इतनी संवेदना,
कि समझ सके कैसे कोई स्त्री,
टीवी सीरियल में हो रही विदाई देख,
सारी स्त्रियों के भाग्य का नीर बहा लेती है,
श्रेष्ठता की तलाश में निकला पुरुष,
नहीं जुटा पाया इतनी निःस्वार्थ पात्रता,
कि समझ सके कैसे कोई स्त्री,
परिवार के लिए अब तक का कमाया,
सारा करियर बिनकहे दाँव पर लगा देती है,
हासिल करने की दौड़ में शामिल पुरुष,
नहीं बचा पाया इतना सौंदर्यबोध,
कि समझ सके कैसे कोई स्त्री,
आधे घंटे की पार्टी के लिए,
एक घंटा सजने में गुज़ार देती है,
नहीं समझ में आएगा पुरुष को कि कैसे,
श्रेष्ठता की होड़ वाली संवेदनहीन दुनिया में,
जीते हुए भी अछूती रही स्त्रियाँ,
और बहती रही भावनाओं की नदी में,
और गुणा गणित की कच्ची स्त्रियों को,
पुरुष भावनाओं के ख़रीद फ़रोख़्त में लूटता रहा,
एक बुढ़िया को सड़क पार कराता सिपाही,
उससे बची खुची उम्र का आशीष ले लेता,
माँ के हाथ के खाने की ज़रा तारीफ़ कर,
बेटा रसोई की आँच में घंटों खड़ा कर देता,
सात जन्मों के साथ के महज़ वादे पर,
पति स्त्री को पूरे दिन प्यासा रख लेता,
निःस्वार्थ स्त्रियों ने पुरुषों को जन्म देकर,
दुनिया चलाने का अधिकार भी दे दिया,
और ऐसा नहीं कि इंसानी दोष स्त्रियों में न थे,
किन्तु अगर स्त्रियाँ चलाती दुनिया,
तो समस्यायें ज़रा छोटी होतीं,
कभी ख़ुद की उम्र घटाकर बतातीं,
किसी की पीठ पीछे शिकायत करतीं,
छोटी-छोटी बात का पहाड़ बनातीं,
कभी बहू पर दहेज़ का तंज़ कसतीं,
पर कहीं विश्वयुद्ध न होते,
धर्म के नाम पर नरसंहार न होता,
क्यूँकि स्त्रियों ने श्रेष्ठता से सदा ऊपर रखा है,
मानवता और संवेदना को,
माँ, बहन, प्रेमिका, पत्नी, बेटी,
मैं शुक्रगुज़ार हूँ जीवन में आयी सारी स्त्रियों का,
जिन्होंने इस कठक़रेज़ दुनिया,
जीने लायक़ बनाई,
गुणा-गणित में डूबी मेरी क़लम से,
भावपूर्ण कविता लिखवाई,
जब तुम प्रकांड पंडित ब्रह्मा नहीं,
बल्कि कृष्ण या शिव बनकर आओगे,
इतना भी मुश्किल नहीं होगा समझना,
राधा या सती में हर स्त्री को समझ पाओगे।