स्पर्श (ज्योत्स्ना ’प्रदीप’)
ज्योत्स्ना 'प्रदीप'रात्रि के हल्के स्पर्श से
झुका के माथ
पौधा सो गया
मानो कोई अनाथ !
सपने में लिये
माँ का हाथ।
रात्रि के हल्के स्पर्श से
झुका के माथ
पौधा सो गया
मानो कोई अनाथ !
सपने में लिये
माँ का हाथ।