शशि के बिन जीवन सार नहीं
ज्योत्स्ना 'प्रदीप'तोटक छंद
(चार सगण 112 =कुल 12 वर्ण-चार चरण)
बिन चाँद कभी जब रात रहे।
किससे मन की यह बात कहे।
तम चीर हिया फटता रहता।
मन ने सब भीतर घात सहे।
शशि के बिन जीवन सार नहीं।
अब ना प्रभ की रसधार कहीं।
हरसा हिय साजन से अपना।
फिर भी छिपता उस पार कहीं॥
मनभावन साजन आस करूँ।
अब चंद्र बिना कित साँस भरूँ॥
अब आ प्रिय जीवन दे मुझको।
फिर से अधरों पर हास धरूँ॥