हरियाली का करो नहीं वध
ज्योत्स्ना 'प्रदीप'चौपाई छंद
कुल चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, अंत में 21 यानी गुरु लघु नहीं होना चाहिए। दो-दो चरण तुकान्त।
पादप अपने हैं ऋषि-मुनि से
भी देवता कभी गुनीं से॥
योगी जैसे सब कुछ त्यागे
इनसे ही तो हर सुख जागे॥
सुमन दिये हैं दी है पाती
नसों-नसों पर चली दराती॥
सब रोगों की हैं ये बूटी
फिर भी श्वासें इनकी लूटी॥
सखा कभी ये कभी पिता है
सबकी इनसे सजी चिता है॥
मानव -काया जब ख़ाक़ बनी
इनकी काया ले राख बनी॥
मानव तेरी नव ये नस्लें
झुलसाई हैं इसनें फसलें॥
वध हैं करते बल से छल से
डरे न आने वाले कल से॥
हरियाली का करो नहीं वध
भूल न मानव तू अपनी हद
जीवन को ना बोझ बनाओ
पौधे रोपें मिलकर आओ।