स्नेह पाती . . .

01-03-2022

स्नेह पाती . . .

भारती परिमल (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

प्रेम पत्र! वही प्रेम पत्र जो शकुंतला ने कदम्ब के पत्तों पर नाखून से लिखकर दुष्यंत को दिया। वाटिका में कंगन में पड़ रही परछाईं में सीता ने पढ़ा और एकांत में बाँसुरी की मीठी तान में राधा ने सुना। वही प्रेम पत्र या प्रेम संदेश, जो कैस ने रेगिस्तान की गर्म रेत पर ऊँगलियों की पोरों से लैला को लिखा। पानी की डूबती-उतराती लहरों के साथ सोहनी ने महिवाल को दिया। खेत की हरी-हरी लहलहाती फ़सलों को पार करते राँझा ने हीर तक पहुँचाया। 

यह थी भावनाओं और संवेदनाओं की एक अनोखी दुनिया, जहाँ प्रेम और अपनापे की गुनगुनी धूप पत्तों से छनकर धरा तक पहुँचती थी। हृदय से हृदय के तार जुड़े होते थे। तब पत्र में अक्षरों के बीच लिखने वाले की छवि उभरती थी। पत्र पढ़ते हुए कभी आँखें भर आती थीं, तो कभी मन ख़ुशी से झूम उठता था। बिन पंखों के मन मयूर कल्पनाओं की ऊँची उड़ानें भर लिया करता था। अपने प्रेमी या प्रेमिका के हाथों लिखा वह पहला ख़त तो आप भी नहीं भूले होंगे। कितने ही बार उसके नाम को ऊँगलियों के पोरों से सहलाया होगा। पढ़ा तो इतनी बार होगा कि लिखावट आँखों में नहीं, दिल में बस गई होगी। पत्र सिर्फ़ प्रेमी या प्रेमिका का ही नहीं होता, पत्र माता-पिता, भाई-बहन, स्नेहीजन, मित्रों सभी को एक डोर में बाँधे रखते हैं। माता-पिता के पत्रों में जहाँ संतान के लिए लाड़-दुलार और आशीर्वाद होता है, तो वहीं स्नेहीजनों के पत्र कुछ संदेश देते हैं, अपनापन लिए हुए होते हैं। माँ की प्यार भरी पाती पढ़ते हुए भला हम अपने बचपन से दूर कैसे रह सकते हैं? पाती पढ़ते हुए, शब्दों की पगडंडियों पर पैर रखते हुए मन का हिरण कभी कुलाँचे भरता है, तो कभी आँखें अनायास ही बचपन की यादों में खो जाती हैं। 

फ़ोन पर कितना भी बतिया लें, पर जो प्यार स्नेह भरे पत्रों में उमड़ता है, वह भला फ़ोन की मीठी वाणी में कहाँ? इसे महसूस किया कभी आपने? हम कितने भी एडवांस क्यों न हो जाएँ, पत्रों की पवित्रता को नकार नहीं सकते। पत्र हृदय का दर्पण होते हैं। उसकी लिखावट हमें एक आत्मिक संतोष देती है, उससे हम भलीभाँति परिचित होते हैं। लिखावट सामने आते ही डूब जाते हैं, अतीत की सुखद स्मृतियों में। 

आज पत्रों की दुनिया ख़त्म हो रही है। वॉट्सऐप का फैलता जाल और उसके माध्यम से प्रसारित होने वाले संदेशों के बीच हम केवल औपचारिकता ही निभाते रह गए हैं। कभी इनसे नाता तोड़कर काग़ज़ और क़लम से नाता जोड़िए और एक पत्र लिखिए अपनों को। ऐसा पत्र जो प्रत्युतर लिखने के लिए सामनेवाले को विवश कर दे। फिर चल पड़ेगा पत्रों का सिलसिला। पत्रों की अनोखी दुनिया में क़दम रख़ते हुए आप भी स्नेह की एक अनोखी फुहार में भीग जाएँगे। तो चलिए शुरूआत करते हैं पत्रों की इस फुहार को महसूस करने की और अपनों से एक अनोखे अंदाज़ में रिश्ता जोड़ने की। 

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