शोषण

रीता मिश्रा तिवारी (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

प्रेमा और रिटायर्ड फ़ौजी कर्नल वीर सिंह दोनों पति-पत्नी के बीच अपार प्रेम था। दोनों में प्यार भरा नोक-झोंक चलता रहता और हँसी-ख़ुशी मज़े में मस्त जीवन जी रहे थे। दोनों ज़िंदादिल इंसान हैं। 

वैसे तो दो बेटे जिनमें से एक बेंगलोर में इंजिनियर, दूसरा डॉक्टर जो साथ में रहता था। 

“मैडम चलिए आज आपको सुबह की सैर कार से कराते हैं। उसके बाद लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे और खाना बाहर ही खा लेंगे। कहिए क्या ख़्याल है आपका।”

“नेकी और पूछ पूछ? बढ़िया ख़्याल है। फिर चलिए चलते हैं।”

“अरे . . . रे . . .रे रोको-रोको“

चूँ . . . की आवाज़ के साथ एक झटके में गाड़ी रुक गई, “क्या हुआ?” 

“उधर देखो शायद कोई अनाथ बच्चा है! रास्ते पर सोया पड़ा है . . . हे भोले नाथ अगर कोई अनहोनी हो गई तो।”

नज़दीक जाकर प्रेमा ने जैसे ही हाथ लगाया वो हड़बड़ा कर उठ बैठा “न . . . न . . .नहीं मुझे छ . . . छोड़ दो,” पास ही रखी फ़ोल्डिंग छड़ी निकाली और ठक-ठक करता भागने लगा। वो काफ़ी डरा हुआ था। आगे बढ़ते ही एक पत्थर से टकरा कर गिर पड़ा। 

तभी प्रेमा की नज़र उसके हाथ और पैरों पर पड़ी जहाँ काले गहरे निशान थे, जैसे किसी ने रस्सी से बाँध रक्खा हो। 

“लगता है आँखों से देख नहीं सकता किसी ने शायद प्रताड़ित किया है बच्चे को?” प्रेमा पति से बोली और उसे उठाने लगी तो वो चिल्ला उठा, “नहीं छोड़ दो छोड़ दो मुझे।” और हाथ हवा में उछालने लगा अपने बचाव में जैसे किसी को मार रहा हो। 

“बेटा! मुझसे डरो नहीं मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ,” और उसे सीने से लगा लिया। वो भी डरे-सहमे उसके सीने में मुँह छिपाए हाँफते हुए ज़ोर-ज़ोर से साँस लेने लगा। निर्मला उसके पीठ को प्यार से सहलाने लगी तो “आह” कहते हुए वो चीख उठा। शर्ट ऊपर की तो दाँत, नाखून और छड़ी के गहरे निशान थे। 

“डरो नहीं बेटा! तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा घर कहाँ है? बताओ क्या हुआ है? पीठ पर ये निशान कैसा? घर से भाग आए हो क्या? तुम्हारी माँ परेशान हो रही होगी? घर चलो।”

“नहीं . . . कोई घर नहीं है, कोई नहीं है मेरा। माँ भी नहीं है वो . . . वो तो छह महीने पहले ही मर गई,” और फफक-फफक कर रोने लगा। 

पूछने पर उसने जो बताया पैरों तले ज़मीन खिसक गई। कोई इतना बड़ा हैवान हो सकता है कि मासूम बच्चे की उफ़ . . . 

बेटे को फोन कर उसे तुरंत हॉस्पिटल लेकर गई। सारी जाँच हो जाने के बाद डॉक्टर ने पूछा, “तुम्हारे साथ ये कब से हो रहा है। डरो नहीं तुम हॉस्पिटल में हो। साथ में पुलिस भी है . . . कोई ख़तरा नहीं है।”

“अंकल! मेरे पिता बचपन में ही मर गए थे। मैं जनम से अंधा हूँ। अम्मा दूसरे के घर में काम करके मुझे घर में ख़ुद से पढ़ाती और गाना सिखाती थी। वो आठवीं पास थी गाना बहुत बढ़िया गाती थी वो चाहती थी मैं किशोर कुमार की तरह गाना गाऊँ। 

“एक दिन माँ को पेट में बहुत दर्द हो रहा था। रात को बोली ‘अगर मैं मर गई तो तू कमला काकी (जिसके घर माँ काम करती) के पास चले जाना। तू अगले सप्ताह दस साल का हो जायेगा। वो तुम्हें अंधों के स्कूल में दाख़िला करवा देगी मैं बोल कर रक्खी है। ख़ूब पढ़ाई करके बड़ा आदमी बनना।’ इतना बोल कर वो सदा के लिए चुप हो गई। फिर कभी नहीं बोली। 

“काकी स्कूल में मेरा दाख़िला करवा दी बोली अब तू यहीं रहेगा। मैं बीच-बीच में तुझसे मिलने आऊँगी, किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो फोन कर देना। 

“दो दिन बाद रात को कोई मेरे कमरे में आया और मेरे साथ गंदी हरकतें करने लगा . . . रोज़ वही सब करता। पूछता तो कुछ बोलता नहीं था। मेरे कुछ भी पूछने, तकलीफ़ होती तो चीखने पर मारता था और मुँह पर टेप लगा देता था। फि . . .फिर एक रात मेरे पैर-हाथ मारने पर चारपाई से बाँध दिया अऽऽऽओ।” वह डर से काँपने लगा। 

“डरो नहीं बेटा बताओ आगे क्या हुआ?” 

“फिर गंदा काम करता। रोता तो दाँत काट लेता आँखों में उँगली धसाता, डंडे से मारता रोज़ रात को वही सब करता। मुझे बहुत दर्द होता था सुसु-पॉटी करने में बहुत तकलीफ़ होती थी।”

“कब से हो रहा है ये सब? आदमी है या औरत?” 

“तीन महीने से . . .व . . .वो बहुत बहुत गंदे अंकल हैं।” 

“वहाँ से भागे कैसे?” 

“एक भैया को मेरे हाल पे तरस आया उसने कहा ज़िन्दा रहना है तो यहाँ से भाग जा, नहीं तो मर जाएगा। उसी ने शाम को खेलने के समय कुछ पैसे देकर भगा दिया।”

स्कूल में पूछताछ से एक बच्ची ने इंस्पेक्टर से कहा “सर यहाँ जब भी कोई नया छोटा लड़का आता है साल भर उसके साथ वही सब होता है और ऐसा सिर्फ़ लड़कों के साथ ही होता है।”

हॉस्टल का वार्डन शक के दायरे में था। पुलिस ने हॉस्पिटल का नाम और “बच्चा अभी ठीक है . . . कल उसका बयान लेंगे.” कह कर एक सरसरी नज़र वार्डन पर डाली और निकल गए। 

रात को हॉस्पिटल के कमरे से चीखने की आवाज़ आई . . .

“वो यहाँ भी आ गया डॉक्टर अंकल . . . गंदे अंकल से बचाओ मुझे बचाओ वो यहाँ भी आ गया अंकल . . . मुझे मार देगा . . . पुलिस अंकल बचाओ मुझे।”

इंस्पेक्टर के साथ डॉक्टर, नर्स, प्रेमा उनके पति, सबके कमरे में आते ही लाइट जला दी गई। बिस्तर के पास अंधा स्कूल हॉस्टल का वार्डन खड़ा था। 

प्रेमा बच्चे को सीने से लगा लिया, “बेटा डरो नहीं हम सब यहीं थे कमरे के बाहर।”

“बेटे! ये तो स्कूल होस्टल के वार्डन अंकल है। कैसे कह सकते हो कि ये वही गंदे अंकल हैं,” इंस्पेक्टर ने कहा।

“न . . . नहीं . . . वही है ये, वही महक वही ख़ुश्बू ये ख़ुश्बू नहीं भूल सकता मैं। ये ख़ुश्बू मेरे नाक और दिमाग़ में बस गयी है। यही . . यही वो गंदा आदमी है अंकल।”

वार्डन ने अपना सारा गुनाह क़ुबूल किया। जज ने दस साल कारावास में रहने की सज़ा सुनाई और बच्चे को अच्छी परवरिश के लिए प्रेमा जी को सुपुर्द कर दिया गया। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें