कोख से कोख तक की यात्रा
रीता मिश्रा तिवारीजन्म से मृत्यु तक की मेरी यात्रा
का आरंभ मेरी माँ की कोख से
उस माँ की कोख तक!
माँ द्वारा ग्रहण किए गए भोजन प्राप्त कर
नौ महीने कष्टमय जीवन व्यतीत कर
अंततः माँ के गर्भ से निर्धारित समयानुसार
गर्भरूपी नरक से मिली मुक्ति मुझे!
जन्मोपरांत मिली मुझे गोद एक नहीं दो माँ की
ममतामयी आँचल की छाँव
एक जन्मदायनी दूसरी धरती माँ की
दोनों माँओं की गोद में निर्भीक खेलता बढ़ता गया
आनंद मिलता रहा सुख जन्नत का!
एक जन्म देकर सुख और ख़ुशियाँ दीं
दूसरी माँ विश्रांति का परमानंद देगी!
एक माँ जीवन जीना सिखाएगी
दूसरी शान्ति से सोना सिखलाएगी!
इसी बीच जी लिया मैंने, ज़िन्दगी के
कई रंगों में रँग गया!
यहाँ मैंने जितना जिया जो सीखा उसे विसर्जित कर दूँगा!
पवित्र हूँ या अपवित्र स्वीकार है मेरी माँ को
विश्वास है मुझे अपवित्र ही स्वीकारेगी वो माँ हमको!
कह रही माँ मेरी कर रही हो इंतज़ार मेरा
दुःख दर्द दूर करोगी सारे मेरे
माँ मेरी झूठ नहीं सच सदा कहती है!
बहुत खेला इस माँ की गोद में
अब प्रतीक्षा ख़त्म हुई तेरी!
सारे बंधन तोड़ कर मोह माया को छोड़ कर
आ रहा हूँ अब मैं तेरी कोख में!
माँ आश्रय देना थपकी देकर
विश्रांति का परमानंद दो माँ अपनी गोद में!