शिखर से तलहटी तक
भावना भट्टजब ऊब जाओ
तुम शिखर की शून्यता से
तब लौट आना तलहटी तक..
तुम्हारी क़ामयाबी की प्रार्थनाओं के साथ
मैं मिलूँगी तुम्हें ठीक उसी जगह पर
जहाँ से तुम चल दिए थे कभी..!
मेरे पास पंख ना सही
मन तो था
काश..! एक बार भी कह देते
कि "साथ चलो तुम..!"
तो शायद
लौटना न पड़ता तुम्हें भी
शिखर से तलहटी तक..!