देह पावन कर रहा है
भावना भट्टविधा: गीत
लो तिमिर अधिष्ठान में, गायन अगन का, चल रहा है,
हाथ थामे, ये हवा का, देह पावन कर रहा है।
जल रही धूँ -धूँ चिता यह, नफ़रतों की, चाहतों की,
मिल रहा दुर्दिन सभी को, आँख सजलित चाहकों की,
देह का पाणि'ग्रहण कर, दाह सांकल गढ़ रहा है,
हाथ थामे ये हवा का, देह पावन कर रहा है।
देख धुँआ जा रहा, अस्तित्व लेकर आदमी का,
हो रहा दर्शन उसी में, चार दिन की चाँदनी का,
छूटता साथी सलौना, प्यार आहें भर रहा है,
हाथ थामे ये हवा का, देह पावन कर रहा है।
उड़ चला है वह गगन में, पंख लेकर पाखियों सा,
संग में साया न आया, क्यूँ गिला हो परिजनों का,
रहनुमा कोई सितारा, आसमाँ में चल रहा है,
हाथ थामे ये हवा का देह पावन कर रहा है।