शब्द-जंगल
डॉ. चन्द्र त्रिखाहर रात एक मुर्दा
पास वाली खाट पर
दबे पाँव चुपके-चुपके
आकर लेट जाता है
सहमता हूँ
चौंकता हूँ
पहचानने का यत्न करता हूँ
और मुर्दा बोलता है
मत डरो! मैं तुम्हारा प्यार हूँ
हर रात एक मुर्दा
पास वाली खाट पर
दबे पाँव चुपके-चुपके
आकर लेट जाता है
सहमता हूँ
चौंकता हूँ
पहचानने का यत्न करता हूँ
और मुर्दा बोलता है
मत डरो! मैं तुम्हारा प्यार हूँ