मित्र
डॉ. चन्द्र त्रिखाहम सब सर्कसों के मसखरे हैं
भूख के इन हंटरों की मार से,
निज को बचाने,
प्यार, नफ़रत, डर, निडरता
का बड़ा नाटक रचाते हैं!
बुद्ध का, चंगेज़ का
एक साथ अभिनय कर दिखाते हैं
अर्थहीन बोलते हैं!
शब्दहीन सोचते हैं!!
हम सब सर्कसों के मसखरे हैं
भूख के इन हंटरों की मार से,
निज को बचाने,
प्यार, नफ़रत, डर, निडरता
का बड़ा नाटक रचाते हैं!
बुद्ध का, चंगेज़ का
एक साथ अभिनय कर दिखाते हैं
अर्थहीन बोलते हैं!
शब्दहीन सोचते हैं!!