सर्दी
डॉ. नरेश कुमार सिहाग
“ग़रीबी लड़ती रही ठंडी हवाओं से,
अमीरों ने कहा, क्या मौसम आया है!”
चिथड़ों में लिपटा, वो काँपता रहा,
हर साँस में जीवन बचाता रहा।
चूल्हा बुझा था, पर आस जल रही,
सपनों की रोटी, राख में गल रही।
उधर महलों में जश्न मनाया गया,
हर कोने में हीटर लगाया गया।
शाम की चाय, गरम पकवान,
सर्दी में भी, गुलाबी थे अरमान।
फिर एक ग़रीब ने पूछा आसमान से,
“क्या तू सिर्फ़ अमीरों का भगवान है?”
मगर उत्तर न आया, सन्नाटा छा गया,
ग़रीब ठिठुरता रहा, मौसम हँसता रहा।
“यही है कहानी इस दुनिया की,
जहाँ सर्द हवाएँ भी अमीरों की!”
1 टिप्पणियाँ
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हृदयस्पर्शी यथार्थपरक रचना!