संकल्प
कुंदन पाण्डेय
मैं तपस्विनी की सुता भला, तप में विश्राम क्या पाऊँगी।
प्रतिदिन नव कोंपल सम ही मैं, आगे बढ़ती ही जाऊँगी।
हर क्षण जो कष्ट लिए उर में, मैं उस वसुधा की जाई हूँ।
हो आदि पुरुष भी नतमस्तक, ऐसी शक्ति बन आई हूँ।
क्यों लक्ष्य नहीं मैं पाऊँगी, ना पीछे क़दम हटाऊँगी।
बाधाओं से लड़ जाऊँगी, निज स्वतः ढाल हो जाऊँगी।
गर मार्ग बिना कंटक के हों, मंज़िल में प्रीत न पाऊँगी
गर बाधाएँ ही ना आए फिर वाक्य में क्या दोहराऊँगी।
जितनी ही असफलता आए, उतना ही क़दम बढ़ाऊँगी।
हरगिज़ भी ना अकुलाऊँगी, एक दिन मंज़िल पा जाऊँगी।