पूर्वा शर्मा मुक्तक - 1
डॉ. पूर्वा शर्मा1.
चलो माना कि सारी ख़ताएँ मेरी,
सज़ा के बहाने ही सही
तुम एक बार तो रूबरू होते।
2.
कई दिनों से मुलाक़ात नहीं,
सोचा आज शब्दों से ही छू लूँ।
3.
समझता नहीं ये नादाँ दिल कि
तू यहाँ नहीं है मौजूद
तुझसे मिलने की ज़िद पे अड़ा,
ढूँढे तुझमें ख़ुद का वजूद।
4.
न कोई आहट, न कोई महक
फिर भी आँखें करती इंतज़ार
हो रहा मन हरपल बेक़रार।
5.
सब कुछ तो छीन ले गए,
उपहार में इंतज़ार दे गए।
6.
हर बार छूकर चले जाते
क्यों नहीं ठहर जाते
तुम समुद्री लहरों से मनचले
मैं किनारे की रेत-सी बेबस।
7.
इश्क़-सौदा.. बड़ा महँगा पड़ा
वो दिल भी ले उड़ा,
बेचैनी देकर फिर ना मुड़ा।
8.
बड़ी कमाल
हमारी गुफ़्तगू
बिन सुने, बिन कहे
सदियों तक चली।
9.
ये बूँदें भी कमाल हैं ना?
भिगोने के बहाने तुझे आसानी से छू गईं।
10.
मुझे तो ये बारिश भी
तेरे प्रेम की तरह लगती है
थोड़ी-सी बरस कर,
बस तड़पा और तरसा जाती है।
11.
तेरे बिन ना जाने ये राहें -
कहाँ ले जायेंगी
बस इतनी दुआ है कि
इन राहों कि मंज़िल तू ही हो।
12.
कितना तड़पाओगे
बारहमासा तो बीत चला
ये बताओ तुम कब आओगे?