पत्ते मुरझाये

01-11-2021

पत्ते मुरझाये

भूपेंद्र सिंह (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

पाखंड का स्वांग रचाने,
झूठे मूल्य मुझे बतलाने।
प्यार से बात तू करती है,
दिल मेरा क्यों भरती है॥
 
ख़्याल दिलों में ऐसे आये, 
हरे हुए पत्ते मुरझाये, 
बेवफ़ाई के भँवर जाल में
प्यारा दिल पत्थर बन जाए॥
 
कैसे भूलूँ झूठे वादे, 
दिल तड़पा गूँजी फ़रियादें 
याद कर सौगंध सेज की, 
जहाँ लिए थे तूने फेरे॥
 
ब्याह से पहले की बातें, 
लगते महज़ बनावटी बातें
प्यार तेरा अब लगे छलावा
मेरे लिए जो किये दिखावा॥
 
होता मुझ पर वज्रपात,
आँखों में दिखते जल प्रपात,
व्यवहार तेरा अज्ञातवास,
जो करती मात-पिता पर आघात॥

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