पलायन

श्रेयांश शिवम् (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

खंडहर, मार्ग में दीख रहे हैं, 
लाखों अश्वत्थामा
साथ में है अबोध संतानें, 
और कई विवाहित श्यामा॥ 
 
उदर है भूखा, कंठ है प्यासा, 
नहीं जानता कोई 
दरिद्रों की अभिलाषा। 
अपने-अपने घर की ओर, 
पैदल लौट रहे कई सुदामा॥ 
 
साथ लिए पैरों के छाले, 
कर रहे हम पलायन
पीड़ा में है अपनी काया, 
विलाप करता है नयन
कष्टकारी है दिवा, 
भयमय है यामा॥ 
 
भुखमरी, ग़रीबी के प्रतीक, 
हम हैं कंगाल ’यात्री’
हैं हम ’अज्ञेय’, ना कि, 
कुशाग्र शास्त्री॥ 
देख हमें इस कोरोना-काल में, 
होता है हंगामा॥ 
 
खंडहर, मार्ग में दीख रहे हैं, 
लाखों अश्वत्थामा 
साथ में है अबोध संतानें, 
और कई विवाहित श्यामा
 
(अश्वत्थामा: भटकने का प्रतीक; श्यामा: साँवले रंग की स्त्री (मज़दूरनी); सुदामा: दरिद्रता का प्रतीक; दिवा: दिन; यामा: रात; यात्री: कंगाल का प्रतीक (नागार्जुन); अज्ञेय:जो जाना ना जा सके (प्रख्यात कवि का उपनाम); चार मज़दूरों का और एक श्यामा मज़दूरनी का प्रतीक। 

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