पदयात्री

15-01-2022

पदयात्री

श्रेयांश शिवम् (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दुर्गंधित हम पदयात्री की काया, 
उस पर जमी है धूल। 
देखो, आडम्बर कि अंधेर नगरी में 
बरस रहा है फूल॥ 
 
फूटी है हम श्रमिकों की नियति 
हो रही है हमारी दुर्गति। 
हम हैं दास किसी स्वामी के 
क्या यही हमारी भूल॥ 
 
छिन गया हमारा उद्यम, 
हुआ ये कैसा अनर्थ
नहीं मिला सहयोग स्वामी से, 
हैं वो पंगु, असमर्थ
संशयग्रस्त है भविष्य, 
वर्तमान हमारे प्रतिकूल
 
पूरा देश स्तब्ध है, 
देख हमारी दुर्दशा 
कहीं हो रही आलोचना, 
और कहीं प्रशंसा
चौपट हमारी व्यवस्था, 
है समस्या का मूल॥

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