हरिजन
श्रेयांश शिवम्उद्यम करे जो चर्म का,
मल ढोये जिसका तन
कोई कहे अछूत उसे,
कोई कहे है हरिजन
गाँव, नगर के अंतिम छोर पर,
बसता दलितों का घर।
पड़ोस में है खेत,
खंडहर और पंछियों का बाँसवन
सामंतों के हैं कृष्ण, राम,
उन्हीं के सारे तीर्थ-धाम
बुद्ध, भीम को अस्पृश्य,
माने अपना भगवन्
मिटाने हेतु छुआछूत,
बुद्ध बनकर आए दूत
पुनः हुआ आरंभ
बौद्ध-धर्म-आंदोलन
सवर्ण-वर्ग कहलाया
कुलीन और शूद्र वर्गहीन
देख भेदभाव विभाजित समाज में,
दलितों ने किया धर्म-परिवर्तन॥