पानी और आसमान

15-01-2022

पानी और आसमान

डॉ. तबस्सुम जहां (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कुछ देर पहले ही ख़ूब बारिश हो कर निपटी है। जगह-जगह गड्ढे पानी से लबालब भर गए हैं। सुमन ने पानी से भरे एक गड्ढे में झाँक कर देखा। उसमें नन्ही-नन्ही मछलियाँ तैर रही हैं। इससे पहले उसने खाने की प्लेट में ही मछली देखी थी। बारिश के पानी से भरे गड्ढे में मछली देखने का उसका यह पहला अनुभव था। कौतूहल से उसने बड़ी बहन कुसुम से पूछा, “दीदी इस पानी में मछलियाँ कहाँ से आयीं।” 

“मछलियाँ? ला देखूँ। अरे हाँ, सचमुच ये तो मछलियाँ ही हैं।” 

कुसुम को भी अचरज हुआ। उसने भी तो पहली बार ही इस प्रकार बारिश के पानी में मछलियाँ देखी थीं। 

“अरे-अरे थोड़ा दूर हट कर देख नहीं तो काट लेंगी तुझे,” कुसुम ने सुमन पर अपने बड़े होने का रोब झाड़ते हुए कहा। 

“पर टीवी में तो दिखाते हैं कि मछली समुंदर में होती है और तालाब में,” सुमन ने मासूमियत से कहा। 

“ये बादलों से गिरी हैं जैसे ओले गिरते हैं। बादल इन्हें समुंदर से अपनी झोली में भरकर लाए और यहाँ गिरा दिया। छपाक से। शायद बादलों को किसी मछली ने काट लिया होगा। मछलियाँ कटखनी होती हैं न इसी लिए। अब बादलों को भी ग़ुस्सा आ गया होगा और उन्होंने सब की सब मछलियों को यहाँ फेंक दिया,” ग्यारह वर्षीय कुसुम ने अपना गूढ़ ज्ञान छोटी बहन सुमन को दिया। 

सुमन जानती है दीदी बहुत समझदार हैं। उन्हें सब पता रहता हैं। काले बादलों के घिरने पर दीदी कहती हैं कि देख सुमन बारिश होगी और थोड़ी देर में सचमुच ही बारिश होने लगती। 

हाय! कितनी नन्ही-नन्ही हैं। नन्हे दाँतों से बादल को काट खाया इन्होंने। सुमन ने गड्ढे में झाँक कर ध्यान से देखा। मछली के साथ जलराशि में उसे आकाश का प्रतिबिंब नज़र आया। नीले आँचल पर सफ़ेद बादलों के फूल टँके हों जैसे। उसने फिर टोका, “दीदी, ये नीचे क्या है आसमान जैसा?” 

“ये आसमान है पगली। नीचे वाला। पानी वाला। इसमें मत उतरना वरना डूब जाएगी नीचे आसमान में,” कुसुम ने यह बात इसलिए कही थी कि कहीं उसकी बहन पानी में उतर कर अपने कपड़े गीले न कर ले। पर सुमन पर इसका दूरगामी प्रभाव हुआ। 

“अरे! यह तो बहुत गहरा है। बहुत ही गहरा,” कहीं उसका पैर न फिसल जाए इस डर से सुमन वहीं जम कर खड़ी हो जाती है। 

’कहीं आसमान में गिर पड़ी तो कैसे निकलेगी? इसका तो तला ही नहीं है। बादलों में अटक गयी तो ठीक है। पापा को दिख तो जाऊँगी। पर पापा बादलों से निकालेंगे कैसे? इतनी लंबी रस्सी कहाँ से आएगी। रस्सी टूट गयी तब क्या होगा। मैं तो वापस आसमान में छपाक से गिर पडूँगी।’ यह सोच कर ही सुमन को एक अज्ञात भय सताने लगता है। वह तुरंत ही गड्ढे से थोड़ा पीछे हट कर खड़ी हो जाती है। पर एकाएक उसका ध्यान फिर से गड्ढे में तैर रही नन्ही मछलियों पर टिक जाता है। 

“मछलियाँ आसमान में क्यों नहीं डूब रही दीदी?” 

उसने मछलियाँ गिनने की कोशिश करती कुसुम से हैरत से फिर पूछा। 

“अरे मछली को तैरना आता है पागल वो कैसे गिरेंगी?” कुसुम जो अभी तक तो किसी मुस्तैद सिपाही के मानिंद तैयार ही थी छोटी बहन के हर सवाल का जवाब देने के लिए। 

“पर नीचे वाले आसमान में उड़ते परिंदे भी तो नहीं डूब रहे दीदी!” सुमन ने मासूमियत से कहा। 

“अरे उन्हें उड़ना आता है पागल; वो नहीं डूबेंगे। जब थक जाएँगे तो नीचे से वापस आ जाएँगे। वापस अपने घोंसले में,” कुसम ने साफ़ किया। 

सुमन जान चुकी थी कि मछलियाँ और परिंदे आसमान में नहीं गिर सकते। मछलियाँ तैर सकती हैं और परिंदे उड़ना जानते हैं। पर वह न तो उड़ सकती है और न ही तैर सकती है इसलिए वह गिर सकती है। नीचे धँस सकती है। उसे गड्ढे के आसमान में नहीं गिरना है। पानी से बचकर चलना है। उसने देखा सड़क पर जगह-जगह पानी भरा है जिसमें आसमान चमक रहा है। उसे सभी से बचकर चलना है। ख़ुद को गिरने से बचाना है। बकरी और बिल्ली भी तो पानी से बचकर निकल रही हैं। उनको पता है अगर पानी के बीच से गए तो आसमान में गिर पड़ेंगे। देखा सब समझदार हैं। सबको पता है कि कब क्या करना है। कैसे बचकर चलना हैं। आसमान नीचे से सब देखता है। कौन गिरने वाला है। उसने ठान लिया कि वह पानी में नहीं जाएगी। चाहे कुछ हो जाए। 

कुछ दिन बाद फिर से बारिश हुई। फिर गड्ढे पानी से भरे। इस बार मछलियाँ नहीं थीं। शायद तैर कर थक चुकीं इसलिए आसमान में डूब गयीं। कहीं दिखायी भी तो नहीं दे रहीं। उसने नीचे झाँक कर देखा। तभी एक लड़का दौड़ता आया और तेज़ी से पानी के उस पार निकल गया। छपाक से पानी में तरंगें कौंध गयीं। कुछ देर के लिए तरंगों ने पानी से आसमान का प्रतिबिंब मिटा दिया। सुमन ने देखा लड़का आसमान में नहीं गिरा। गिरता कैसे? वह तेज़ी से उसके ऊपर से जो निकल गया था। आसमान कुछ समझ ही नहीं पाया होगा इतनी देर में। साइकिल वाला भी तो नहीं डूबा इसमें। सुमन को सब समझ आ गया। अगर आसमान से बचना है तो तेज़ी से निकल जाओ। आसमान कुछ देर के लिए ग़ायब हो जाएगा। वह अंधा हो जाएगा। उसे पता ही न चलेगा कि उसके ऊपर से कौन निकल गया। 

सुमन ख़ुश थी। घर जाकर दीदी को बताऊँगी। उसे आसमान को चकमा देना आ गया है। अब वह उसमें नहीं डूबेगी। उसे अब डरने की भी ज़रूरत नहीं है। दीदी उसे बहुत शाबाशी देंगी। सुमन उठी और भागती हुई पानी के गड्ढे को पार कर गयी। वह ख़ुश थी। वह डूबी जो नहीं। उसने आसमान को चकमा देना सीख लिया था। 

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