ऑफ़र ही ऑफ़र

अरुण अर्णव खरे (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

दीपावली के आने की जितनी ख़ुशी होती है, दीपावली के नज़दीक आते ही जान सिकुड़ने लगती है। घर का सर्वसम्मत और निर्विवाद मुखिया होने के बावजूद मेरी स्थिति अल्पमत सरकार के मुखिया जैसी हो जाती है। यह भी सच है कि मुझे मुखिया पद से अपदस्थ किए जाने का कोई ख़तरा नहीं है और न ही किसी की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की सम्भावना है लेकिन सभी मेरी ओर अजीब सी ललचाई नज़रों से देखने लगते हैं जैसे सरकार के आख़िरी साल में मंत्री पद पाने के लिए विधायक हाई कमान की ओर ताकते पाए जाते हैं। 

दस दिन बाद ही दीपावली थी। हर दिन की तरह उस दिन भी मैं सुबह की चाय मिलने की प्रतीक्षा में था कि छोटी बेटी चाय के साथ दो टोस्ट लेकर आ गई। मैं चौंका और पूरब की तरफ़ देख कर कन्फ़र्म किया कि सूरज अपनी निर्धारित दिशा से ही निकला है या नहीं। बेटी जो छुट्टी के दिन दस बजे से पहले नहीं उठती है आज छह बजे चाय के साथ हाज़िर है, यह तो ग़ज़ब हो गया। मैंने कप उठाया और सिप लेने जा ही रहा था कि वह बग़ल में बैठ गई और बहुत प्यार से बोली, “पापा, कल का पेपर नहीं देखा आपने, ट्रिपल कैमरे वाले स्मार्टफोन पर तीन माह का रिचार्ज फ़्री और पाँच सौ रुपए छूट का ऑफ़र चल रहा है।”

“देखा तो था . . . पर मुझे नए मोबाइल की ज़रूरत नहीं है अभी,” मैंने चाय का सिप लेते हुए कहा। 
“पापा, आप भी . . . मैं आपकी नहीं अपनी बात कर रही हूँ। मैं कब से पुराने वर्सन वाले मोबाइल से काम चला रही हूँ, सेल्फ़ी तक सही नहीं आती उससे। मुझे ये वाला मोबाइल चाहिए इस दीवाली पर, पुराना स्मार्टफोन मम्मी को दे दूँगी, इसी बहाने वह भी स्मार्ट हो जाएँगी,” बेटी ने लड़ियाते हुए अपना निर्णय सुना दिया। मुझे एकाएक समझ में नहीं आया कि बेटी को क्या कहूँ? सुबह से लेकर देर रात तक अथक रूप से व्यस्त रहकर सबका काम समय पर करने वाली माँ, बेटी को स्मार्ट नहीं लग रही है। माँ को स्मार्ट होने के लिए पुराने फोन की ज़रूरत है। मतलब व्यक्ति के पास स्मार्टफोन नहीं तो वह स्मार्ट नहीं। 

मैं सोच ही रहा था कि कुलदीपक जी प्रकट हो गए, यह उस सुबह का दूसरा आश्चर्य था। वह भी स्नेह जताते हुए बोले, “पापा पिछली दीवाली पर आपने लैपटॉप दिलाया था, सोचता हूँ इस बार बाइक ले लूँ, स्कूटी से कॉलेज जाने पर निगेटिव फ़ीलिंग आती है, दोस्त लोग अजीब निगाह से देखते हैं, बैठने से कतराते हैं। इस बार 150 सीसी बाइक के साथ फ़्री म्यूज़िक सिस्टम का ऑफ़र भी है, घर में म्यूज़िक सिस्टम है भी नहीं . . . बहुत बढ़िया मौक़ा है पापा। मुख्यमंत्री ने भी इस बार सैलरी दीपावली से पहले देने की घोषणा कर दी है . . . उन्हें भी फ़िक्र है कि बच्चों की दीपावली अच्छे से मने . . . तो फिर डन समझूँ मैं!”

मैं कुछ कहता कि बड़ी बेटी भी आ गई। मैंने उसकी ओर कातरता से देखा और उसने मेरी ओर परम संतोषी भाव से देखते हुए कहा, “पापा इस बार मेरी कोई डिमांड नहीं है, आप जो दिलाएँगे मैं ख़ुशी-ख़ुशी ले लूँगी . . . बस इतना ध्यान रखिए कि छुटकी और छोटे से कम न हो।”

“जैसा इन लोगों ने बताया है, तुम भी बता दो,” मेरे मुँह से निकला। 

“कल मंजरी ने मुझे मोटी कह कर छेड़ा था, आप बताइए, क्या मैं सच मैं मोटी लगती हूँ? यदि आप मेरे मन का ही दिलाना चाहते हैं तो मुझे इलिप्टिकल एक्सरसाइज़ मशीन दिलवा दीजिए। मैंने पता किया था उस पर फ़्री टमी-ट्रिमर का ऑफ़र भी है, उसे आप ले लेना पापा . . . आपका पेट भी कितना बाहर निकल आया है पापा, आप अपना ज़रा भी ध्यान नहीं रखते।” 

बड़ी बेटी का कंसर्न और दरियादिली देख कर मेरा मन भर आया। तभी किचन से हाथ पोंछते हुए श्रीमती जी का प्रवेश हुआ। उन्हें देखते ही तीनों एक साथ बोल पड़े, “आप भी बता दो मम्मी, इस दीपावली पर क्या चाहिए आपको . . . पापा आज बहुत अच्छे मूड में हैं।”

“मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए . . . मैं तो अपने सीरियल इस पुराने टीवी में ही देख लेती हूँ पर जब ये क्रिकेट मैच देखते हुए नाक-भौं सिकोड़ते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। बयालीस इंच का एलईडी टीवी ले लेते हैं इस बार . . . ऑफ़र भी अच्छा है, चालीस हज़ार से ऊपर की ख़रीद पर एक ग्राम का लक्ष्मी-गणेश वाला सोने का सिक्का फ़्री। हमें पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ अलग से नहीं ख़रीदनी पड़ेंगी।”

मेरा मन अपनी बेटियों, बेटे और पत्नी की उदारता देख कर भर आया। सभी को मेरी कितनी चिंता है। कोई टमी-ट्रिमर दिलाना चाह रह रहा है तो कोई क्रिकेट मैच बड़ी स्क्रीन पर देख सकूँ इसके लिए फ़िक्रमंद है। अचानक मुझे लगा सीने में कुछ फँस गया है। इतने सारे ऑफ़र एक-एक करके दिल में उतर गए थे और अब वहाँ अपनी प्रायोरिटी की धौंस एक दूसरे पर जता रहे थे। मैंने किसी तरह स्वयं को व्यवस्थित किया और पूछा, “आपको इन ऑफ़र्स की जानकारी कैसे मिली?”

“क्या पापा आप भी,” छोटी बेटी ने मुझे इस तरह देखा जैसे मैंने कोई बेवुक़ूफ़ी वाली बात कह दी हो। 

“पापा, अख़बार से मिलती है और कहाँ से,” बड़ी बेटी ने बात सँभालते हुए कहा, “आजकल तो अख़बार में ऑफ़र ही ऑफ़र छपते हैं, समाचार उनके बीच में ढूँढ़ने पड़ते हैं।”

“ओह . . . अभी तो दीपावली में सात दिन हैं, जैसे-जैसे दिन बीतेंगे तो और अच्छे ऑफ़र भी आएँगे, हम थोड़ा इंतज़ार कर लेते हैं,” मैंने अल्पमत सरकार के मुखिया की कुटिलता भरी दूरंदेशी से काम लिया। सब मान गए। 

इसके बाद मैंने उसी दिन दोपहर में हॉकर को फोन करके अख़बार बंद करने का निर्देश दे दिया। 

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