कन्फ़ेशन

15-07-2022

कन्फ़ेशन

अरुण अर्णव खरे (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आज बहुत उदास है जोजो। जोजो जब उदास होती है, इसी तरह चर्च के दाहिनी तरफ़ बने छोटे से सरोवर के किनारे पड़ी बेंच पर घंटों बैठी रहती है, शून्य में ताकती, उड़ती तितलियों को निहारती तथा बत्तखों के बच्चों को अठखेलियाँ करते देखते हुए। जब मन शांत हो जाता और चर्च में चहल-पहल बढ़ने लगती तो उठ कर प्रार्थना में भाग लेने चली जाती। कभी मन नहीं होता तो अपने कमरे में आ जाती। 

फ़ादर एटकिंस जब भी उसे इस तरह बैठे देखते हैं वह समझ जाते हैं कि जोजो आज फिर किसी बात को लेकर आहत हुई है। वह विह्वल है। वह उसे टोकते भी नहीं है क्योंकि वह समझ चुके हैं कि जोजो के मन को शान्ति इसी बेंच पर एक-दो घंटे गुज़ारने के बाद अक़्सर मिल जाती है। वह पहले कितनी बार जोजो से कह कर देख चुके हैं कि “डियर चाइल्ड, मन जब व्यथित हो, कुछ सूझ न रहा हो कि क्या करें, कोई ऐसी ग़लती हो गई हो जो तुम्हारे स्वयं समझ में न रही हो, तब तुम ईशू के पास जाकर उनसे बात किया करो। अपनी जानी-अनजानी ग़लतियों के लिए कन्फ़ेस करना सीखो। ईशू बहुत दयालु हैं वह सब पर दया करते हैं।” पर जोजो, “फ़ादर जब समय आएगा कन्फ़ेस ज़रूर करूँगी” कह कर सरोवर किनारे लगी बेंच पर बैठने चली जाती। 

कौन है जोजो? जोजो यानी कि जोसलिन जो। वह जब बमुश्किल चार-पाँच दिन की रही होगी तभी कोई उसे चर्च के बाहर छोड़ गया था। किसी अभागी माँ की औलाद है जोजो। फ़ादर एटकिंस ने प्रशासनिक औपचारिकाताएँ पूरी कर उसे चर्च में ही रख लिया था। सिस्टर रचैल के रूप में उसे मदर और पालनहार मिल गया। जोजो चर्च में रहने वाले दूसरे बच्चों से शीघ्र हिल-मिल गई पर वह खेलते, उछल-कूद करते अक़्सर कहीं खो जाती। बच्चे उसे “ओए जोजो, क्या हुआ, कहाँ खो गई” कहते हुए झूमा-झटकी कर बैठते। दिन बीतते गए। जोजो अठारह वर्ष की हो गई। दोपहर में चर्च में उसके लिए विशेष प्रार्थना रखी गई थी। केक काटा गया और फिर बच्चों का रंगारंग धमाल शुरू हो गया। चर्च में रहने वाले हर बच्चे का जन्मदिन वहाँ इसी तरह मनाते हैं। यह परम्परा फ़ादर एटकिंस ने शुरू की थी। उनका मानना है कि सामाजिक मर्यादा और मान्यताओं के विरुद्ध जन्मे इन बच्चों के हिस्से में जितनी ख़ुशी आ सके उसके लिए प्रयास करते रहना चाहिए। 

जोजो को कोई मानसिक बीमारी नहीं है। उसका पूरा चेकाप मिशन अस्पताल में एकाधिक बार हो चुका है। वह पढ़ने में बहुत अच्छी है। कक्षा में हमेशा पहले या दूसरे स्थान पर आती है। प्रकृति से उसे सहज लगाव है। सुंदर लैंडस्केप बनाती है। बड़ी हुई तो उसकी पेंटिंग में यदा-कदा पेड़ों से झरते पत्तों के बीच उदास लड़कियों के चेहरे दिखाई देने लगे। क्यों? इसका उत्तर जोजो के भी पास नहीं है। ये चित्र अनायास बन जाते हैं। सायास बनाना चाहे तो नहीं बना पाती। जोजो चपल भी बहुत है। हर काम तेज़ गति से करती है। उसके साथी कैम्पस ग्राउंड में ही बैडमिण्टन या क्रिकेट खेलते हैं लेकिन उसे खो-खो खेलना पसंद है। उसके साथी जो-जो और खो-खो की तुक मिलाकर अक़्सर उसे छेड़ते रहते हैं—देखो जोजो, खेलने चली खोखो या ऐसा ही कुछ और। 
उस दिन जोजो के हाथों में एक अख़बार था जो आते समय वहीं बेंच के नीचे छूट गया था और जोजो उठाना भूल गई थी। अगले दिन सफ़ाई कर्मचारियों को मुड़ा-तुड़ा वह अख़बार वहाँ पड़ा मिला तो जैनी समझ गई कि यह अवश्य ही जोजो का होगा। उसने उसे ले जाकर मदर रचैल को दे दिया। मदर ने उस समय तो ध्यान नहीं दिया लेकिन उसे जोजो को देने के लिए रख लिया। 

दिन बीतते रहे जोजो का अचानक उदास हो जाना जारी रहा। अंदर का तूफ़ान जब ज़्यादा मचलने लगता, वह उसी सरोवर के किनारे आकर बैठ जाती। इतने सालों में उसने समझ लिया है कि प्रकृति में हर दुख को हरने की अपरिमित क्षमता है। फूल, तितलियों, चिड़ियों और बत्तखों के बीच कुछ समय बिताने से उसका मन शांत हो जाता है। प्रफुल्लित भले ही न हो पाए पर संयमित नज़र आने लगती है जोजो। कई बार वह सोचती है कि उसे फ़ादर की बात माननी चाहिए . . . वैसे हर बात मानती है उनकी, पर न जाने क्यों उनके कहने पर ईशू के सामने कन्फ़ेस करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। सोचती है किस बात के लिए कन्फ़ेशन करूँ, उसने कुछ किया भी तो नहीं। ईशू दयालु हैं तो क्या बात-बात पर ईशू को परेशान करना उचित है। पर फ़ादर नहीं समझते। कहते हैं ईशू कभी परेशान नहीं होते। हमसे अनजाने में बहुत सी ग़लतियाँ हो जाती हैं जिनके बारे में हमें उस समय पता नहीं चलता, ईश्वर के सामने कन्फ़ेस करने से मन को शान्ति मिलती है। मन हल्का हो जाता है। मन में मानव-कल्याण का भाव आ जाता है। सब कुछ भला लगने लगता है। जोजो को यह सब तो सरोवर के किनारे मिल जाता है। जिस दिन उसे वहाँ शान्ति नहीं मिलेगी उस दिन वह ज़रूर ईशू के सामने कन्फ़ेस करने जाएगी। पर फिर दुविधा, कन्फ़ेस करेगी या ईशू से पूछेगी कि उसका मन इतना अस्थिर क्यों है, इतनी जल्दी विचलित क्यों हो जाता है। मन तो होता ही चंचल है। ईशू मन की प्रकृति को क्यों बदलना चाहेंगे? उसे शांत रखने की कोई अदृश्य प्रेरणा ही दे सकते हैं वह। तो उसे पता है मन को कहाँ शान्ति मिलती है? जोजो मन ही मन सोचती बहुत है और फिर उनके तार्किक उत्तर भी मन में ही खोज लेती है। 

मदर रचैल अगले दिन दोपहर में जोजो के कमरे में वह मुड़ा-तुड़ा अख़बार रखने गईं। जोजो उस समय कॉलेज में थी। डायरी के बीच में वह अख़बार रखकर पलटी ही थीं कि डायरी से कुछ और पेपर की कटिंग्स नीचे आ गिरीं। मदर ने उन्हें उठाया, मन में उत्सुकता जगी कि देखें क्या कटिंग्स हैं ये, पर उन्हींने जोजो को सिखाया था कि किसी दूसरे व्यक्ति की चीज़ें उसकी अनुमति के बग़ैर नहीं छूनी चाहिएँ। उन्होंने सभी कटिंग्स को सम्भाल कर डायरी में रख दिया। रखते-रखते एक कटिंग की हेडलाइन पर न चाहते हुए भी उनकी नज़र पड़ गई—१६ दिसम्बर २०१२ को घटित निर्भया कांड के समाचार की कटिंग थी वह। इसके बाद तो रचैल ने सारी कटिंग्स उलट-पुलट डालीं। हर कटिंग में किसी न किसी के साथ हुए नृशंस बलात्कार और हत्याओं के समाचार थे। यह देखकर मदर के भीतर एक अनजाना डर समा गया कि जोजो के अवचेतन में कहीं यह बात तो घर नहीं कर गई कि वह किसी बलात्कारी की संतान है। बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें स्वतः ही समझ में आने लगता है कि वे या तो अनाथ हैं या नाजायज़। जोजो ने भी ख़ुद के बारे में ऐसी ही धारणा बना ली है शायद। मदर के सामने जोजो के अचानक उदास हो जाने के अनेक प्रकरण साकार होने लगे। उन्हें जोजो की उदासी का कारण समझ में आने लगा। जोजो जब भी ऐसे समाचार पढ़ती होगी तो अंदर से विह्वल हो जाती होगी और उदासी के अँधेरों में भटकने लगती होगी। “जोजो से बात करूँगी शाम को,” सोचा मदर ने फिर विचार बदल दिया, “ये ठीक नहीं होगा, फ़ादर को पहले बताना चाहिए। वह कोई न कोई रास्ता ज़रूर सुझाएँगे। वही जोजो को उदासी के इस भँवरजाल से बाहर ला सकते हैं।” 

“अभी अनुमान के आधार पर जोजो से बात करना उचित नहीं होगा, वह बच्ची नहीं है अब, कॉलेज में पढ़ती है, उसके पास स्वयं का भला-बुरा समझने की प्रतिभा है, हम उससे अपने मन की शंका के समाधान के लिए ग़ैरवाजिब प्रश्न नहीं पूछ सकते। हमें इंतज़ार करना चाहिए और जोजो पर नज़र भी रखनी होगी। यदि रेप कैसेज के साथ उसकी उदासी का कोई स्पष्ट दृष्टांत सामने आता है तो हमें हर स्थिति पर विचार करके ही कोई रास्ता खोजना होगा,” फ़ादर ने मदर रचैल को समझाया, जिन्होंने शाम की प्रेयर के बाद फ़ादर को पूरी कहानी सुनाई थी। 

“जी फ़ादर,” कहकर मदर चुप हो गईं। 

“तुम नील को जानती हो मदर, वह जोजो के साथ अक़्सर दिखाई देता है, संडे प्रेयर में भी दोनों साथ ही आते हैं आजकल . . . सावधानी से पता करो कि जोजो ने कभी उससे अपनी परेशानियों के बारे में कुछ शेयर किया हो,” फ़ादर ने चलते हुए मदर रचैल से कहा। 

“जी फ़ादर, नील वेलिंगटन स्कूल की बायोलॉजी टीचर मार्था का बेटा है। उसके पिताजी आर्मी में थे जो 2003 या 2004 में अखनूर में फ़ौजी शिविर पर हुए आतंकवादी हमले में शहीद हो गए थे। नील स्कूल के दिनों से जोजो का दोस्त है। दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। आजकल वह बी.बी.ए. कर रहा है।” 

“मदर, तुमको तो नील के बारे में इतनी जानकारी है, किससे पता चला ये सब?”

“जोजो ने ही बताया है . . . नील उसे पसंद करता है और वह नील को।”

“तो जोजो नील से ज़रूर अपनी बातें, परेशानियाँ और ख़ुशियाँ शेयर करती होगी . . . अगले रविवार को जब नील चर्च में आए तो मुझे मिलवाना उससे।”

“जी फ़ादर।”

रविवार को नील अपनी माँ के साथ चर्च आया। मदर रचैल उससे बात करने का मौक़ा तलाश कर पाती, उससे पहले ही जोजो सामने आ गई। बोली, “मदर, प्रेयर के बाद मैं नील के साथ मार्केट जाऊँगी, मुझे पेंटिंग का कुछ सामान लेना है। मेरे फिल्बर्ट और मॉप ब्रश ख़राब हो गए हैं . . . कुछ पेस्टल कलर्स और ड्राइंग शीट्स भी लेनी हैं।” 

“ओके माई चाइल्ड,” मदर बोली। यह कहने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था। अब उन्हें अगले रविवार का इंतज़ार करना था। 

जोजो लौट कर आई तो कुछ ज़्यादा ही अपसेट थी। वह उदास नहीं थी इस बार, उदास होती तो सरोवर किनारे जाकर बैठ जाती। वह अपसेट थी। उसने लापरवाही से सामान टेबल पर रखा और अपने कमरे में चली गई। मदर रचैल को अचम्भा हुआ। जोजो, जो हमेशा नील के साथ वक़्त बिताकर ख़ुश नज़र आती थी, आज वह दुख और बेचैनी से भरी हुई थी। मदर से रहा नहीं गया, उनके हृदय की धड़कनें बढ़ने लगीं। वह जोजो के कमरे में आ गईं, “क्या हुआ डियर चाइल्ड, तुम इतना अपसेट क्यों हों।” 

“मैं आपको नहीं बता सकती मदर,” कहते हुए जोजो मदर से ज़ोर से लिपट गई और सुबकने लगी। मदर चुपचाप उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए मौन सान्त्वना दिए जा रहीं थी। यह पहला मौक़ा था जब जोजो इस तरह से मदर के सामने फूट-फूट कर रो रही थी। मदर सोच रहीं थी, “नील ने ऐसा क्या कह दिया होगा जिसने जोजो को इतना दुखी कर दिया।” फिर उन्होंने अपने सोच की दिशा बदलने की कोशिश की, “शायद कुछ अच्छा होने जा रहा है। आँसुओं के साथ यदि जोजो के अंदर के तूफ़ान ने भी बाहर निकलने का रास्ता खोज लिया तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसे जी भर कर रो लेने दो। इस समय उससे कुछ कहना उचित नहीं है उसे केवल स्नेहिल और अपनत्व के स्पर्श की ज़रूरत है।” मदर बीच-बीच में उसकी पीठ सहलाते हुए उसके आँसू भी पोंछती जा रही थी। 

जोजो सुबकते-सुबकते कब सो गई, मदर को पता ही नहीं चला। वह उसका सिर अपनी गोदी में रखे, डायरी में रखी कटिंग्स के बारे में सोच रही थी कि “कौन सा सूत्र पकड़ कर जोजो से इस बारे में बात की जा सकती है। उन कटिंग्स में केवल बच्चियों के साथ हुए बलात्कार के समाचार ही नहीं थे अपितु लिंचिंग, ऑनर किलिंग और लव जिहाद सहित बहुत सी अमानवीय घटनाओं के समाचार भी थे। कुछ कटिंग्स महिलाओं के लिए संघर्ष करने वाली मानसी प्रधान और मलाला युसुफ़जई जैसी सख़्शियतों के बारे में थी तो कुछ में महिलाओं के विरुद्ध क्राइम के आँकड़ों की पड़ताल थी। इन सब कटिंग्स के बारे में मदर जब भी सोचती, डर से भर जाती, “जोजो क्यों ये सब सहेज कर रखती है, क्या चलता रहता है उसके मन में। उस जैसी प्यारी बच्ची को क्या लेना-देना इन बातों से।” सोचते-सोचते मदर उसके भविष्य को लेकर परेशान हो उठती। 

जोजो रात भर सोती रही। सुबह उठी तो अपेक्षाकृत तरोताज़ा थी। मदर ने उसे आवाज़ दी, “जोजो, मैंने भी अभी तक कॉफ़ी नहीं पी है, सोच रही थी, तुम उठोगी तो साथ में पिएगें।” 

“माई स्वीट मदर, हाऊ गुड आर यू, मेरा इतना ख़्याल रखती हो और मैं हमेशा आपको दुखी कर देती हूँ,” जोजो बोली, “आज मैं कॉफ़ी बनाती हूँ . . . मैं बनाऊँ मदर?”

मदर को सुनकर अच्छा लगा। उनके अंदर से आवाज़ आई, “अब चिंता की बात नहीं है, जोजो बदल रही है, उसने अपने अँधेरों से निकलने का प्रयास शुरू कर दिया है . . . रास्ता भी पा लिया है शायद।” 

“मदर, आपसे कुछ पूछना है।”

“फ़ील फ़्री माई डियर, जो कहना चाहती हो कहो।”

“मैं कौन हूँ?”

सुनकर क्षणभर के लिए अवाक्‌ रह गईं मदर। फिर ख़ुद को सँभालते हुए बोली, “तुम ईश्वर की सबसे सुंदर रचना हो डियर और मैं इस दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली मदर हूँ।” 

“मैं जानती हूँ मदर, मुझे इससे इंकार नहीं है कि आप दुनिया की श्रेष्ठतम्‌ माँ हैं पर मन है कि तरह तरह के प्रश्न करता है। कभी लगता है कि नाजायज़ संबन्धों से जन्मी सन्तान हूँ मैं . . . तो कभी बलात्कार की शिकार किसी बेबस माँ की कोख से उपजी अभागी औलाद हूँ, आप बताइए मदर, मुझे अब क़तई बुरा नहीं लगेगा . . . मैंने इस दुनिया के बहुत से गंदे और उजले चेहरों को देख लिया है।”

“मुझे ख़ुद भी नहीं पता कि सच क्या है, सच पता चलता भी कैसे, पता करने की ज़रूरत ही नहीं समझी कभी . . . यहाँ जो आता है उसे ईशू का उपहार समझ कर सहेज लिया जाता है . . . तुम्हें हमसे कोई शिकायत है तो ज़रूर बोलो, पर ये मन से निकाल दो मेरे बच्चे कि तुम अभागी हो, नाजायज़ हो। हर बच्चा ईश्वर का प्रतिरूप है जिसे पाकर हम धन्य महसूस करते हैं,” मदर भावविह्वल होते हुए बोली। 

“आप सही कहती हैं मदर, आज के बाद कभी ये बात अपने दिल में नहीं आने दूँगी . . . प्रॉमिस है मेरा,” जोजो चिरपरिचित अंदाज़ से भिन्न स्वर में बोली। 

सुनकर मदर रचैल के चेहरे की आभा द्विगुणित हो गई। जोजो के शब्दों का जादुई असर हुआ उन पर। “थैंक्स माई डियर” ही कह सकीं वह। जोजो ने उठकर उन्हें पानी पिलाया और उनकी गोदी में सिर रखकर बैठ गई। मदर उसके घुँघराले बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगी। 

“मदर, फ़ादर हमेशा कहते हैं कन्फ़ेस करने को, तो मैं सोचती थी फ़ादर ऐसा क्यों कहते हैं . . . कन्फ़ेशन तो ग़लतियों का होता है, बुरी आदतों का होता है, पापों का होता है। मुझे लगता था मैंने कभी कोई ग़लती की ही नहीं, कोई बुरी आदत भी नहीं है मुझमें। अब सोचती हूँ कि शाम की प्रेयर के बाद प्रभु से कन्फ़ेस कर लूँगी . . . बहुत दुख दिया है मैंने आपको, मदर . . . माँ।”

“नहीं बच्चे, माँ केवल तभी दुखी होती है जब उसका बच्चा दुख में हो, माँ तो बच्चे की एक झलक देखकर ही प्रफुल्लित हो जाती है।”

“आप सचमुच महान हैं माँ।”

जोजो के मुँह से बार-बार अपने लिए माँ का संबोधन सुनकर मदर भावुक हो उठीं। उनके लिए जब अपनी भावनाएँ छुपा पाना मुश्किल हो गया, तो बोली, “आज कॉलेज नहीं जाना क्या?”

“आज की छुट्टी, आज मैं पूरा दिन आपके साथ बिताना चाहती हूँ, यहाँ इसी तरह बैठे-बैठे,” जोजो फिर कुछ सोचते हुए बोली, “आपके मन में भी बहुत से प्रश्न होंगे लेकिन आप पूछ नहीं रही हैं, आपको कितना विश्वास है अपनी बेटी पर?”

“विश्वास और प्रेम दो ही चीज़ें इस दुनिया की अमूल्य निधि हैं, जिसके पास ये दोनों निधियाँ हैं उससे अधिक धनी कोई और व्यक्ति इस दुनिया में नहीं है . . . सच है मैं बहुत कुछ जानना चाहती थी तुमसे, पर अब मैं तुम्हें दुखी देखना नहीं चाहती, तुम सदा ख़ुश रहो मेरे बच्चे।”

“लेकिन माँ से कुछ छुपाना भी नहीं चाहिए . . . मैंने अपनी ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा है . . . सब कुछ शायद मैं आपको खुलकर बता भी नहीं सकूँगी, पर आपका जानना भी ज़रूरी है,” जोजो उठी और अपने कमरे में जाकर अपनी डायरी उठा लाई, “इसमें आपको सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएँगे . . . आप जब समय मिले पढ़िए इसे . . . मैं ब्रेकफ़ास्ट तैयार करती हूँ।”

जोजो किचन में चली गई। डायरी का पहला पृष्ठ खोलते हुए मदर रचैल के हाथ काँप रहे थे। उन्होंने ईशू का स्मरण किया और पहला पन्ना पढ़ने लगी। 

अक्टूबर 7, 2012: मेरा १०वाँ जन्मदिन। पहली बार मेरे मन में आया कि मेरे जन्म की ये तारीख़ सही भी है या नहीं। मेरी दोस्त रोज़ी ने समझाया तुम्हें इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। फ़ादर कबसे तुम्हारा जन्मदिन इसी दिन मनाते आ रहे हैं फिर इस बार इतना क्यूँँ सोचना, इस बारे में। शाम को सबने मिलकर बहुत एन्जॉय किया। 

अक्टूबर 9, 2012: मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़राब दिन है यह, मैं कमरे में पड़ी-पड़ी बहुत देर तक फूट-फूट कर रोती रही। शाम को पहली बार सरोवर के किनारे बैठ कर दो घंटे से अधिक समय तक सोचती रही। बच्चियों की शिक्षा के पक्ष में आवाज़ उठाने के लिए तालिबानी आतंकवादियों ने 15 साल की लड़की मलाला युसुफ़जई के सिर में गोली मार दी थी। मैं उस दृश्य की कल्पना करके ही सिहर गई थी। क्यों जन्म लेती हैं लड़कियाँ ऐसे संसार में जहाँ उनको पढ़ने के लिए भी संघर्ष करना पड़े। 

अक्टूबर 15, 2012: एक सप्ताह लग गया मुझे इस सदमे से बाहर आने में। आज रोज़ी ने मुझे यू-ट्यूब पर मलाला पर बनी फ़िल्म “ए स्कूलगर्ल्स ओडिसी” दिखाई। मलाला को सलाम करने का जी चाहा। यह फ़िल्म दिखाने के लिए मैंने रोज़ी के गालों को चूम लिया। 

फिर कुछ ख़ाली तारीख़ें या एक-दो पंक्तियों में सामान्य सी बातें। दिसम्बर की 16 तारीख़ पर उनकी नज़र ठहर गई। बड़ी सी दास्तान लिखी थी उस पन्ने पर। दिल्ली रेप कांड का दिन था वह। निर्भया कांड के नाम से जो वर्षों सुर्ख़ियों में रहा था। जोजो के शब्दों में “मुझे जब पता चला कि इस घिनौने कार्य को अंजाम देने वालों में नाबालिग भी शामिल हैं तो मुझे कितना आघात पहुँचा है कह नहीं सकती। शेम ऑन यू।” 

“मुझे उदास देखकर फ़ादर ने आज फिर कहा है कि ईशू के सामने जाकर कन्फ़ेस करो, सारी परेशानी दूर हो जाएगी। अब फ़ादर से कैसे कहूँ कि ऐसी दुनिया ईशू बनाते ही क्यों हैं।” 

फिर कुछ ख़ाली तारीख़ें या यार-दोस्तों की बातें। शैतानियों का वर्णन, स्कूल फ़ंक्शन का उल्लेख, रोज़ी की सिंगिंग की तारीफ़ और क्लास में प्रथम आने की ख़ुशी का ज़िक्र। अगले बर्थ डे पर डेनिस का विशेष उल्लेख। डेनिस उसके साथ ही पढ़ता था और बेसबाल का अच्छा खिलाड़ी था। जोजो लिखती है, “डेनिस ने मुझे ग्रीटिंग कार्ड और कैडबरी की बड़ी चॉकलेट गिफ़्ट में दी, मुझे अच्छा लगा। रोज़ी भी मेरे लिए पेस्ट्री लेकर आई थी जिसे हम तीनों ने मिलकर खाया। दोपहर के केक-कटिंग, सिंगिंग व डांस कार्यक्रम को सबने ख़ूब एंजाय किया।” 

“अगले दिन रोज़ी ने यह कहकर मेरे होश उड़ा दिए कि डेनिस से दूर रहा करो, वह अच्छा लड़का नहीं है।” उसने रोज़ी की छातियों पर हाथ रखते हुए कहा था, ‘टेबल टेनिस की गेंद सरीखी हैं अभी’ और बेशर्मी से हँस दिया था। कितना पीड़ादायी होता है ऐसी स्थितियों से गुज़रना और फिर मन को वापस स्थिर कर पाना। कई दिनों तक मेरे दिमाग़ में रोज़ी के कहे शब्द गूँजते रहे थे। मेरे बारे में भी उसके इतने ही गंदे ख़्यालात होंगे। कई दिनों से बार-बार मन में एक ही बात हलचल मचा रही है कि 12-13 साल के लड़के के मन में ऐसी गंदगी कहाँ से आती है . . . क्या हर मर्द औरत को ऐसी ही गंदी दृष्टि से देखता है? औरत उसके लिए केवल उपभोग की वस्तु है और कुछ नहीं . . . मेरा कोई भाई नहीं है और न ही पिता का सान्निध्य मिला है मुझे, मैं कभी उनके वात्सल्य और प्रेम को समझ ही नहीं पाऊँगी। मुझे पहले ही डेनिस के बारे में समझ जाना चाहिए था जब वह बार-बार बेढंगे जोक सुना कर मुस्कराने लगता था। एक बार तो उसने सुनिधि मैडम व बैंजामिन सर के करैक्टर पर उँगली उठाई थी। मुझे उससे तभी दूर हो जाना चाहिए था पर ग़लती हुई है मुझसे . . . लेकिन क्या ये सच में मेरी ग़लती है या इस समाज के विद्रूप होते चेहरे की ख़ौफ़नाक सच्चाई इस तरह सामने आई थी . . . मैं जितना सोचती हूँ उतने ही प्रश्न मुँह बाए खड़े हो जाते हैं।” 

पढ़ते हुए मदर की आँखें गीली हो गईं। नैपकिन से पोंछते हुए मदर ने पन्ना पलट दिया। 

इसके बाद उदास होने की अनेक घटनाओं का ज़िक्र था जिनमें मुम्बई, कठुआ और उन्नाव रेप काण्ड से लेकर हाल में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में मासूमों के संग हुई नृशंसता की कहानियाँ थी और उन्हें लेकर राजनेताओं के घटिया बयान। दो दिन पहले की पोस्ट थी वह। मदर पढ़ने लगी, “पिछले दस-पंद्रह दिनों में घटी घटनाओं को कोई दलित और सवर्ण का मुद्दा बनाना चाहता है तो कोई ठाकुर और ब्राह्मणों के विरुद्ध षड़यंत्र निरूपित करने में व्यस्त है तो कोई हिंदु-मुसलमान का रंग देने की कोशिश में जुटा हुआ है। एक राजनेता बोल रहा है कि आपको उत्तरप्रदेश में हुए बलात्कार दिखते हैं पर राजस्थान के बलात्कारों पर चुप रहते हैं। बंद करो यह बकवास। घृणा होती यह सब देख-सुन कर। कितने अमानवीय हो गए हैं हम . . . किसी को लड़की का रौंदा हुआ शरीर और लहू-लुहान आत्मा दिखाई नहीं दे रही है। धिक्कार है तुम्हें। शर्म आती है तुम्हें देखकर। ख़ुद को इंसान समझने की शक्ति नहीं रह गई है मेरे पास।” 

“मन बहुत विचलित है। सरोवर किनारे आज तीन घंटे से अधिक बैठी रही पर चैन नहीं मिला। कल रविवार है। नील से भेंट होगी तो शायद मन की बेचैनी कुछ कम हो जाए। उसके साथ समय बिताना अच्छा लगता है मुझे। कल मदर से कहकर उसके साथ मार्केट जाकर शॉपिंग करके आऊँगी।” 

इसके बाद थी अंतिम पोस्ट—

“रात के तीन बजे हैं। दिन में नील के साथ सारी शॉपिंग की। इस बीच वह कई बार घड़ी की ओर देख चुका था, लगा उसे जल्दी है। शॉपिंग करके मैं किसी रेस्त्रां में बैठकर काफ़ी पीना चाहती थी कि नील मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए बोला, ‘जो, घर चलते हैं। आज ममा भी अपने किसी दोस्त के साथ गई है। कोई नहीं है घर पर . . . अकेले होंगे हम दोनों . . . समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रहा हूँ।’ सुनकर मैं हतप्रभ रह गई—ये कौन सा नील बोल रहा है . . . दोस्त या केवल मर्द . . . दोस्त से पहले वह भी केवल एक मर्द है, यह सिद्ध कर दिया है उसने। कानों पर विश्वास नहीं हुआ . . . ऐसी बेशर्मी, ऐसी धृष्टता और वो भी इतनी बेबाकी से। मैंने उसका हाथ झटक दिया और चली आई। वह आवाज़ देता रहा . . . मैं यंत्रवत् चलती रही . . . इसके बाद मुझे ध्यान ही नहीं कि क्या हुआ? उसकी पसंद से ख़रीदे रंग और ब्रश का कैरीबैग हाथ से कब छूट गया . . . कब यहाँ पहुँची और सो गई . . . अब याद भी नहीं करना चाहती वह सब।” 

“भूख भी लग रही है। मदर सो रही हैं, उनकी नींद में विघ्न नहीं डाल सकती। याद आता है कि बैग में डार्क चॉकलेट रखी है वही निकाल कर खा रही हूँ। अब मैं भयमुक्त हूँ . . . सारा डर, सारी उदासी जाती रही। इस दुनिया में जीना है तो डर और उदासी की कोई जगह नहीं होनी चाहिए ज़िन्दगी में। निर्बल मन के साथ जानवरों के बीच कोई नहीं रह सकता। मैं कल मदर को सब बता दूँगी और ईशू से भी कन्फ़ेस कर लूँगी कि मैंने लोगों को पहिचानने की भूल की है। इस भूल के लिए क्षमा करें।” 

मदर ने भरी आँखों से डायरी बंद करके जोजो की ओर देखा जो ब्रेकफ़ास्ट तैयार कर डायनिंग टेबल पर लगा रही थी। 

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