मुझे नहीं मालूम

27-02-2014

मुझे नहीं मालूम

अमितोष मिश्रा

वो कौन था या रब, 
मुझे नहीं मालूम। 
फ़रिश्तों का भी होता है मज़हब, 
मुझे नहीं मालूम॥
 
मैं तो कब से बेताब हूँ इक अदद मुलाक़ात को, 
कभी तुझको भी सताएगी ऐसी ही तलब
मुझे नहीं मालूम॥
 
वो चिनाब का पानी वो दिलकश शिकारा आज भी है। 
मगर उस बेवा का बेटा आएगा कब, 
मुझे नहीं मालूम॥
 
वो तो बच्चों की मुस्कान लहलहाती फ़सलों में रहता है, 
उसे मंदिरों मस्जिदों में खोजने का मतलब, 
मुझे नहीं मालूम॥
 
अक़्सर पड़ोसियों का अपने हालचाल पूछ लेता हूँ, 
शहरों में रहने के अँग्रेज़ी अदब, 
मुझे नहीं मालूम॥
 
भरे हों पेट बच्चों के और जेब भी न ख़ाली हो, 
आएगी कभी ऐसी सुकून भरी शब, 
मुझे नहीं मालूम॥
 
तमाशबीन सारी दुनिया और डोर उसके हाथ में, 
दिखाने हैं अभी कितने और करतब, 
मुझे नहीं मालूम॥

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