मेरी प्यारी बहना मेरी जान
पल्लवी श्रीवास्तव
बड़ी होकर बहना मेरी,
कितनी दूर हो जाती है
हक़ीक़त की राह इसने ही दिखाई है,
हुनर से पहचान करवाई है
सफ़र की थकान इसने मिटाई है।
शिक्षक बन कर पढ़ाया इसने,
अच्छे या हों बुरे हालात
साथ इसने हमेशा निभाया है,
उदासी इसने दूर भगाई है
रोते हुए चेहरे पर हँसी आई है,
भरोसे की ताक़त इसने बढ़ाई है।
एक दिन जिनके बिना, नहीं रह सकते थे हम,
सब ज़िन्दगी में अपनी मसरूफ़ हो जाते हैं
रिश्ते नए . . .
ज़िन्दगी से जुड़ते चले जाते हैं,
शादी के बाद उसका ससुराल ही अपना घर हो जाता है,
कैसी होती है ये रीत—
जिसने पाल-पोस कर बड़ा किया,
वही पराया हो जाता है
बड़ी होकर बहना मेरी,
कितनी दूर हो जाती है।
छोटी-छोटी बात बताए बिना,
हम नहीं रह पाते थे
अब बड़ी-बड़ी मुशिकलों से
हम अकेले जूझते जाते हैं।
ऐसा भी नहीं कि उनकी एहमियत नहीं है कोई,
पर अपनी तकलीफ़ें
जाने क्यूँ छुपाये जाते हैं,
सब अपने उलझनों में उलझ कर रह जाते है।
कैसे बताएँ उन्हें हम,
वह हमें, कितना याद आते हैं
वह जिन्हें एक पल भी,
हम भूल नहीं पाते हैं,
बड़ी होकर बहना मेरी
कितनी दूर हो जाती है।
1 टिप्पणियाँ
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7 Feb, 2024 03:07 PM
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका