मेघा बरसे
रमेश गुप्त नीरदपपीहा बोले आधी रात
मेघा बरसे सारी रात।
जाने किस सूने मन आज
सुधि-पीड़ा लाई बरसात,
लेकर जीवन मधुरिम राग
बूँदों ने भी गाया फाग।
महकी मिट्टी, महके पात
भीगा मन भी महका साथ।
मेघा बरसे सारी रात . . .।
झाड़-सरीखा जीवन जग में
झेल रहे जो अति लाचार,
तृषित धरा के अंक समाये
तृषित से ढोते जीवन भार।
कुसुमाये ये जीवन गात
आसमान जब बना प्रपात।
मेघा बरसे सारी रात . . .।
सपन सलोना झूला झूले
पावस की जब चले बयार।
मनवा डाली डाली झूमे
मधुर कंठ गाये मल्हार।
हरियायी पियरायी याद
मन द्वारे बन तोरण-पात।
मेघा बरसे सारी रात . . .॥