मौन दो
सौरभ मिश्राठीक उस समय
जब अपनी नई दुनिया की
नींव भर रहा होता हूँ
देख रहा होता हूँ
नए ख़्वाब
नई उड़ान के
कोई आता है
बनावटी संवेदनाओं से लबरेज़
जैसे कुछ फेंक देने की जल्दी में
कहता है,
तुम निराश मत होना!
उदास मत होना!
दुखी मत होना!
और मैं, इस एकतरफ़ा संवाद के बाद
ख़ुद को इन्हीं निराशा की
अतल गहराइयों में
गिरा पाता हूँ।
मेरे अनचाहे शुभाकांक्षी
मुझे दे सको
तो अपना
मौन दो।