कुछ दोहे जन्माष्टमी पर
सौरभ मिश्राजन्म हुआ श्रीकृष्ण का, ख़ुश भए सब लोग।
रतन लुटावें नंद बबा, दें माखन मिसरी भोग॥
धन्य वासु और देवकी, भगवान हुए संतान।
माँ यशोदा ओखल बाँध कहें, तू कितना शैतान॥
ग्वालन माखन ओट रखे, कि आयेंगे ब्रजनाथ।
न आए तो मायूस भई, खाएँ तो पकड़े हाथ॥
गोकुल की गैया सोच रही, जग के पालनहार।
हमें चरावें नंद गाँव, हम होंगे भव से पार॥
हर पुष्प सुवासित ‘सौरभ’, हर कली हुई बेचैन।
तरुणाई में फूट पड़ीं, कि मिले मुरलीधर से नैन॥