मैनिफ़ेस्टो

04-05-2016

मैनिफ़ेस्टो

गौरव भारती

मैं भूखा .....
तुम भी भूखे हो,
आओ, आओ मिलकर भूख मिटायें,
इक-दूजे को नोचे खायें।

नहीं खा सके इक-दूजे को?
क्यों न सियासी पेंच लगायें,
बहुत सीखा है इतिहास से हमने,
नुस्ख़ा क्यों न वही आजमायें।

चलो खेलते हैं एक खेल,
गेरुआ-हरा प्रतिद्वंदी बन जायें,
लोहित हो यह मही पल-भर में,
चील-कौओं की दावत हो जाये।

यही वक़्त की माँग है,
सत्ता की परिभाषा में यह आम है,
ख़रीदार चाहिए इस बाज़ार में,
देश बेचना भी क्या कोई बड़ा काम है? 

बिकते हैं स्तम्भ लोकतंत्र के,
लोकतंत्र क्या बिका नहीं?
भूनते हैं बच्चे भुट्टे के दाने,
संविधान क्या झुका नहीं?

आओ रोटी सकें हम,
जाहिल गँवारों को लड़ने दो,
काम हमारा है मैनिफेस्टो दिखलाना,
इन श्वानों को भौंकने दो।

मैनिफेस्टो है अपना तैयार,
आओ समाजवाद का नारा लगायें,
उदारीकरण की नीति अपनाकर,
मिल-बाँट कर खायें-गायें। 

रोटी कपड़ा और मकान,
मैनिफेस्टो में हैं तमाम,
इन श्वानों की तरफ हड्डी फेंको,
भरो, भरो जितना भर सकते हो गोदाम

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