बेनज़ीर
गौरव भारतीनज़्म लिख रहा हूँ
एक बेनजीर
तुम्हारी हँसी
को लेकर
और रख जाऊँगा
तुम्हारे सिरहाने
जिसे तुम रोज़
गीला कर देते हो
आँसुओं से अपने
लेकिन इस दफ़ा
यक़ीनन मुस्कुराओगे
क्योंकि यह सिर्फ़
नज़्म नहीं
मेरी कोशिश है
लौटाने की तुम्हारी हँसी
बेनज़ीर हँसी
जिसे गठरी बाँध
रख छोड़ा था तुमने
यादों के गलियारे में
जो मुझे भेंट गयी है
यूँ अचानक
तुम इसे अपने लबों पर
सजा लेना
ज्यों अक्सर खोंस लेती थी
फूल मुझसे माँगकर
अपनी ज़ुल्फ़ों में
और मैं हरा हो जाता था।